वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त नजर सुनवाई का दूसरा दिन

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधता को लेकर उठे सवालों पर गंभीर रुख अपनाते हुए संकेत दिए हैं कि वह इस कानून के कुछ विवादास्पद प्रविधानों पर अंतरिम रोक लगा सकता है। कोर्ट ने खासतौर पर “वक्फ बाई यूजर” यानी उपयोग के आधार पर वक्फ घोषित की गई संपत्तियों के स्वत: रजिस्ट्रेशन और गैर-अधिसूचित करने से रोक जैसे मामलों पर चिंता जताई है।
क्या है मामला?
देशभर से सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून और उसके 2025 संशोधन के खिलाफ 70 से अधिक याचिकाएं दायर हुई हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 26 का उल्लंघन बताते हुए खारिज करने की मांग की है। कुछ याचिकाएं तो 1995 के मूल वक्फ कानून को भी चुनौती देती हैं।
हालांकि, कुछ याचिकाएं कानून के समर्थन में भी आई हैं, जिससे यह मामला और जटिल हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां: कानून के संतुलन पर सवाल
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ (जिसमें जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल हैं) ने दो घंटे लंबी सुनवाई में कई अहम सवाल उठाए:
“वक्फ बाई यूजर” संपत्तियों को बिना अधिसूचना के वक्फ कैसे घोषित किया जा सकता है?
क्या गैर मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों या केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है?
कोर्ट ने यह भी पूछा कि “अगर हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया जाता, तो वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों को क्यों?”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 26 संसद को कानून बनाने से नहीं रोकता, लेकिन कानून सबके लिए समान रूप से लागू होना चाहिए।
क्या कहता है वक्फ संशोधन कानून, 2025?
वक्फ कानून 1995 में संशोधन करते हुए 2025 में लाया गया नया कानून कई बदलाव लाता है:
वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है, भले ही वो वक्फ बाई यूजर हों या बाई डीड।
जिला कलेक्टर को यह जांचने की शक्ति दी गई है कि संपत्ति सरकारी है या नहीं – जब तक जांच पूरी नहीं होती, संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिमों को भी शामिल किया जा सकता है।
हिंसा और विरोध प्रदर्शन: कोर्ट की नाराजगी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा को गंभीर चिंता का विषय बताया। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और भानगढ़ में हुई हिंसा, और उसके बाद हुए हिंदुओं के पलायन पर कोर्ट ने गहरी चिंता जताई।
सीजेआई ने साफ कहा, “यह हिंसा हमें परेशान करती है। यह कोई तरीका नहीं है।”
अदालत का रुख: न्यायिक संतुलन की कोशिश
हालांकि कोर्ट ने अभी कोई औपचारिक अंतरिम आदेश नहीं दिया है, लेकिन स्पष्ट किया है कि वह सरकार की बात सुने बिना कोई भी फैसला नहीं करेगा। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कैविएट दाखिल कर यह सुनिश्चित किया है कि सरकार को सुने बिना कोई आदेश न जारी हो।
इस बीच, कोर्ट ने कानून के अच्छे प्रावधानों को भी हाईलाइट करने की बात कही। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि कुछ संशोधन व्यावहारिक और पारदर्शिता बढ़ाने वाले भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट अब गुरुवार को केंद्र सरकार और कानून का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनेगा। इसके बाद ही तय होगा कि कानून के किसी हिस्से पर अंतरिम रोक लगेगी या नहीं।
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