7 अप्रैल 2025 को जब उर्मिला जमनादास अशर ने 79 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कहा, तो सिर्फ एक महिला नहीं, बल्कि लाखों दिलों की ‘गुज्जुबेन’ चली गईं। एक साधारण गुजराती गृहिणी से सोशल मीडिया सेंसेशन बनने तक का उनका सफर बताता है कि जुनून और आत्मविश्वास से किसी भी उम्र में ज़िंदगी को बदला जा सकता है।
एक आम ज़िंदगी की असाधारण शुरुआत
मुंबई के एक पारंपरिक गुजराती परिवार में जन्मी उर्मिला बा का जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा था। एक पत्नी, माँ और दादी के रूप में उन्होंने वर्षों तक परिवार की सेवा की। लेकिन किस्मत ने उन्हें बार-बार आज़माया।
उन्होंने अपने पति को खोने के बाद तीनों बच्चों को भी खो दिया। ढाई साल की बेटी की दर्दनाक मौत एक इमारत से गिरने से हुई। बड़े बेटे का निधन ब्रेन ट्यूमर से हुआ, और छोटे बेटे की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई। इन त्रासदियों ने उन्हें तोड़ा जरूर, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
जब उम्र बन गई पहचान का कारण
कोविड महामारी के दौरान, जब पूरी दुनिया रुकी हुई थी, तब 75 साल की उर्मिला बा ने अपने पोते हर्ष के साथ ‘गुज्जुबेन ना नास्ता’ नाम से गुजराती नाश्तों का छोटा-सा व्यवसाय शुरू किया। यह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं था, यह उनकी आत्मनिर्भरता और परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक था।
गुज्जुबेन का यूट्यूब चैनल “GujjuBen” देखते ही देखते लोकप्रिय हो गया। उनके वीडियो में दिखती थी घर की रसोई की खुशबू, एक दादी की ममता और एक महिला की अडिग हिम्मत। उनका अंदाज़ इतना सहज और अपनापन भरा था कि लोग उनसे जुड़ते चले गए।
सोशल मीडिया से मंचों तक का सफर
उनकी लोकप्रियता महज़ यूट्यूब तक सीमित नहीं रही। उन्होंने TEDx जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी कहानी सुनाई। मास्टर शेफ इंडिया जैसे शो में उनकी चर्चा हुई। उन्होंने अपने भाषणों में महिलाओं को प्रेरित किया कि “अगर दिल में जज़्बा हो, तो कोई भी उम्र नई शुरुआत के लिए देर नहीं करती।”
उनकी सादगी, बोलने का अंदाज़ और मेहनत ने न केवल भारतीयों का, बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों का भी दिल जीत लिया।
गुज्जुबेन: एक नाम, एक प्रेरणा
उर्मिला बा की कहानी उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो सोचती हैं कि ज़िंदगी अब थम गई है। उन्होंने दिखाया कि चाहे कितने भी दुख हों, आशा की लौ को बुझने नहीं देना चाहिए। उन्होंने एक बार कहा था:
“मैंने ज़िंदगी को हारने नहीं दिया, मैंने उसे नए सिरे से जीना सिखा दिया।”
आज भले ही गुज्जुबेन हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका संघर्ष, उनका मुस्कुराता चेहरा और उनके बनाए स्वादिष्ट व्यंजन हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगे।
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