भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 54वीं बैठक 7 अप्रैल से शुरू हो चुकी है, और इस बार यह बैठक कई मायनों में खास मानी जा रही है। बीते कुछ महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति में आई कमी और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के मद्देनज़र अब विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आरबीआई रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकती है।
वर्तमान में रेपो दर 6.25 प्रतिशत पर है, जिसे फरवरी में घटाया गया था। यदि आगामी बैठक में एक और कटौती होती है, तो यह महामारी के बाद दूसरी बड़ी राहत मानी जाएगी।
क्यों अहम है यह दरों में कटौती? मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा भारत और चीन सहित करीब 60 देशों पर जवाबी सीमा शुल्क लगाए जाने की घोषणा से बाज़ारों में चिंता का माहौल है। इससे निर्यात क्षेत्र प्रभावित हो सकता है और आर्थिक वृद्धि की रफ्तार पर असर पड़ सकता है। ऐसे में घरेलू खपत और निवेश को प्रोत्साहन देना बेहद ज़रूरी हो गया है।
RBI के पास दर में कटौती का पूरा आधार है, क्योंकि फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 3.61% पर आ गई, जो पिछले सात महीनों का न्यूनतम स्तर है। साथ ही, अंडों, सब्ज़ियों और अन्य प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट से महंगाई पर काबू पाने में मदद मिली है।
विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं? बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का मानना है कि वैश्विक हालात और तरलता की स्थिरता को देखते हुए आरबीआई इस बार रेपो दर में कटौती कर सकता है। उनका मानना है कि इससे बाजार को एक सकारात्मक संकेत मिलेगा और साल भर में और भी कटौतियों की उम्मीद बन सकती है।
वहीं, रेटिंग एजेंसी इक्रा ने भी यही अनुमान लगाया है कि इस बार रेपो दर में चौथाई प्रतिशत की कटौती हो सकती है, हालांकि वह नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में कोई बदलाव नहीं देखती।
‘देखो और इंतज़ार करो’ की नीति? हालांकि, एसोचैम (ASSOCHAM) ने एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उसके अध्यक्ष संजय नायर का कहना है कि फिलहाल RBI को दरों में कटौती की बजाय बाजार के रुख को कुछ और समय तक देखने की ज़रूरत है। वे कहते हैं कि आरबीआई द्वारा हाल ही में किए गए तरलता उपायों के प्रभाव को देखना महत्वपूर्ण है।
आवास बाजार के लिए भी राहत की उम्मीद सिग्नेचर ग्लोबल के संस्थापक प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि रेपो दर में कटौती से कर्ज सस्ता होगा, जिससे लोग घर खरीदने के लिए आगे आएंगे और रियल एस्टेट सेक्टर को मजबूती मिलेगी। हालांकि, उनका यह भी मानना है कि इस नीति का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि वाणिज्यिक बैंक इस कटौती को आम ग्राहकों तक कितनी जल्दी पहुंचाते हैं।
आगामी मौद्रिक नीति बैठक न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आने वाले वित्त वर्ष में विकास दर को रफ्तार देने की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हो सकती है। रेपो दर में संभावित कटौती जहां एक ओर आम उपभोक्ता के लिए राहत ला सकती है, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को वैश्विक चुनौती के बीच स्थिर बनाए रखने में मददगार होगी।
अब सभी की नजरें 9 अप्रैल को होने वाली घोषणा पर टिकी हैं। क्या आरबीआई एक और दर कटौती कर अर्थव्यवस्था को नई दिशा देगा? इसका जवाब कुछ ही घंटों में सामने होगा।
Discussion about this post