सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को बड़ी राहत देते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें राज्य सरकार पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था। यह जुर्माना गंगा नदी के प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण में उचित सहायता न देने तथा एनजीटी के निर्देशों का पालन न करने के कारण लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित आदेश पर अगले आदेश तक रोक लगाने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण गंगा नदी के प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के मुद्दे पर विचार कर रहा है और इस प्रक्रिया में वे सभी राज्य और जिले शामिल हैं, जिनसे होकर गंगा और उसकी सहायक नदियां बहती हैं।
गंगा नदी की जल गुणवत्ता पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि इससे पहले बिहार में गंगा और उसकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता की समीक्षा की गई थी। न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे गंगा में मिलने वाले सहायक नदी के स्थानों के साथ-साथ बिहार में गंगा के प्रवेश और निकास स्थलों से जल के नमूने एकत्र करें और उनकी विश्लेषण रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
एनजीटी का आदेश और बिहार सरकार की दलील
राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पिछले वर्ष अक्टूबर में अपने आदेश में कहा था कि बिहार सरकार द्वारा गंगा नदी की जल गुणवत्ता से संबंधित निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। अधिकरण ने यह भी उल्लेख किया कि बिहार राज्य या उसके किसी भी जिले ने इस संबंध में कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की है। इसके चलते एनजीटी ने बिहार के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई में वस्तुतः उपस्थित रहने का निर्देश दिया था, ताकि यह बताया जा सके कि गंगा नदी के प्रदूषण नियंत्रण के लिए 2016 के निर्देशों का पालन किस हद तक किया गया है।
बिहार सरकार को मिली राहत
अब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से बिहार सरकार को इस मामले में अस्थायी राहत मिल गई है। हालांकि, इस विषय पर अंतिम निर्णय आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा। गंगा नदी की स्वच्छता को लेकर न्यायालय और अन्य पर्यावरणीय निकायों की सक्रियता को देखते हुए यह महत्वपूर्ण होगा कि बिहार सरकार अपने प्रयासों को तेज करे और जल प्रदूषण रोकने के लिए ठोस कदम उठाए।
गंगा नदी की सफाई और संरक्षण को लेकर न्यायालय का यह फैसला निश्चित रूप से एक अहम मोड़ है। यह मामला न केवल बिहार, बल्कि गंगा किनारे स्थित अन्य राज्यों के लिए भी एक संदेश है कि नदी की स्वच्छता और प्रदूषण नियंत्रण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अब यह देखना होगा कि बिहार सरकार इस अवसर का उपयोग कर गंगा नदी की जल गुणवत्ता सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है।
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