दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास के एक हिस्से में आग लगने के बाद वहां नकदी मिलने के मामले ने न्यायिक जवाबदेही को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है। इस मुद्दे पर सक्रियता दिखाते हुए राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सभी दलों के नेताओं की एक बैठक बुलाई, लेकिन यह बैठक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।
बैठक में आम राय नहीं बनी
राज्यसभा सभापति की ओर से बुलाई गई इस बैठक में न्यायपालिका की जवाबदेही को लेकर चिंता तो जताई गई, लेकिन कोई सर्वसम्मत निष्कर्ष सामने नहीं आया। सूत्रों के मुताबिक, अब धनखड़ विभिन्न नेताओं से व्यक्तिगत मुलाकात कर इस पर चर्चा कर सकते हैं। इससे पहले मंगलवार को भी यह मामला सदन में उठा था, जहां नेता सदन जे.पी. नड्डा और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विधायिका की सहमति से आगे बढ़ने पर अपनी सहमति जताई।
टीएमसी सांसदों की आपत्ति
बैठक में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसदों ने इस मामले पर सदन में चर्चा की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि इस तरह के गंभीर मुद्दों पर किसी चैंबर में नहीं, बल्कि संसद के भीतर चर्चा होनी चाहिए। एक टीएमसी सांसद ने सवाल उठाते हुए कहा, “मुद्दों पर सदन के भीतर चर्चा क्यों नहीं हो रही? संसद में चर्चा के लिए एक स्थापित प्रक्रिया है, और उसे ही अपनाया जाना चाहिए।”
शिवसेना और भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया
शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि कोई आम सहमति नहीं बन पाई है, लेकिन सभापति अगले सप्ताह इस पर चर्चा की अनुमति दे सकते हैं। भाजपा सांसद किरण चौधरी ने न्यायिक जवाबदेही पर सभापति की पहल को सकारात्मक बताया और कहा कि “हम सभी को न्यायपालिका पर भरोसा है, लेकिन हालिया घटनाक्रम से चिंताएं बढ़ी हैं, जिन पर विचार आवश्यक है।”
धनखड़ की अगली रणनीति
इससे पहले, सोमवार को भी धनखड़ ने जे.पी. नड्डा और मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कर मामले पर चर्चा की थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि वे इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट आने का इंतजार करेंगे। 21 मार्च को भी राज्यसभा में उन्होंने न्यायिक जवाबदेही का मुद्दा उठाते हुए 2014 में लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक जवाबदेही अधिनियम (NJAC) का जिक्र किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था।
न्यायिक जवाबदेही की जरूरत
इस पूरे घटनाक्रम ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक बार फिर गंभीर बहस छेड़ दी है। न्यायपालिका को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जाएं, इस पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सभापति धनखड़ की यह पहल क्या कोई ठोस दिशा ले पाती है या फिर यह केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी।
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