अंतरिक्ष हमेशा से ही मानव जाति के लिए जिज्ञासा और रोमांच का केंद्र रहा है। अगर आपको मौका मिले धरती से बाहर जाने का, तो क्या आप चांद, मंगल या बृहस्पति जाना चाहेंगे? यह सवाल जितना रोचक है, उतना ही दिलचस्प है इन जगहों तक पहुंचने में लगने वाला समय और इसके पीछे की वैज्ञानिक प्रक्रिया। आइए जानते हैं कि आखिर इन अंतरिक्ष यात्राओं में कितना समय लगता है और इसका गणित क्या है।
चांद: धरती का सबसे करीबी पड़ोसी
चांद हमारी धरती का सबसे नजदीकी खगोलीय पड़ोसी है, जिसकी औसत दूरी 3,84,400 किलोमीटर है। यह सुनने में कम लग सकता है, लेकिन चांद तक पहुंचना उतना आसान नहीं जितना यह दूरी दर्शाती है।
जब नासा ने अपने ऐतिहासिक अपोलो मिशन के तहत पहली बार इंसानों को चांद तक भेजा, तो यह यात्रा औसतन तीन दिनों में पूरी हुई थी। अपोलो 8 मिशन सबसे तेज़ था, जिसने मात्र 69 घंटे (करीब 2.8 दिन) में चांद की कक्षा में प्रवेश कर लिया था। हालांकि, हर मिशन का तरीका अलग हो सकता है। यदि किसी मिशन को ईंधन की बचत करनी हो, तो उसे ऊर्जा-कुशल लेकिन धीमे मार्ग से भेजा जाता है।
उदाहरण के लिए, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चंद्रयान-2 मिशन 22 जुलाई 2019 को लॉन्च हुआ था और इसे चांद तक पहुंचने में करीब 48 दिन लगे थे। इसकी वजह यह थी कि इसे धीरे-धीरे ऊर्जा-कुशल मार्ग से भेजा गया था, ताकि कम ईंधन में अधिक दूरी तय की जा सके। इस तरह चांद तक पहुंचने में हफ्तों या महीनों का समय भी लग सकता है।
मंगल: लाल ग्रह तक का लंबा सफर
मंगल ग्रह हमसे कहीं ज्यादा दूर स्थित है। धरती से मंगल की औसत दूरी लगभग 22.5 करोड़ किलोमीटर है। यह सफर चांद की तुलना में कहीं ज्यादा लंबा और जटिल होता है। आमतौर पर, किसी अंतरिक्ष यान को मंगल तक पहुँचने में 7 से 10 महीने का समय लगता है।
उदाहरण के लिए
Mars Reconnaissance Orbiter को मंगल की कक्षा में पहुँचने में 7.5 महीने लगे।
MAVEN मिशन को 10 महीने लगे।
Perseverance रोवर 2020, जिसे 30 जुलाई 2020 को लॉन्च किया गया था, 203 दिनों (लगभग 7 महीने) बाद मंगल की सतह पर उतरा।
मंगल मिशनों में सिर्फ दूरी ही नहीं, बल्कि वहां सही कक्षा में प्रवेश और सुरक्षित लैंडिंग भी चुनौती होती है। यह सारे फैक्टर तय करते हैं कि मंगल तक का सफर कितना तेज़ और कुशल होगा।
बृहस्पति: सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह
अब बात करते हैं हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति (Jupiter) की। यह धरती से औसतन 77 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित है, जो मंगल की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक दूरी पर है। इसकी विशाल दूरी के कारण वहां पहुंचने के लिए न सिर्फ तेजी बल्कि एक स्मार्ट प्लान भी जरूरी होता है।
सीधे जाने पर ईंधन बहुत ज्यादा खर्च होगा, इसलिए वैज्ञानिक मिशनों में गुरुत्वाकर्षण सहायता (Gravity Assist) तकनीक का उपयोग करते हैं। इसमें यान को धरती, शुक्र या अन्य ग्रहों के पास से गुजारकर उसकी स्पीड बढ़ाई जाती है ताकि कम ईंधन में अधिक दूरी तय की जा सके। इस प्रक्रिया में अधिक समय लगता है, लेकिन यह यात्रा अधिक कुशल बन जाती है।
उदाहरण के लिए
NASA का पहला बृहस्पति मिशन Galileo को पहुँचने में 6 साल लगे क्योंकि उसने कई गुरुत्वाकर्षण सहायता तकनीकों का उपयोग किया था।
Juno मिशन को बृहस्पति तक पहुँचने में 5 साल लगे।
Voyager 1 मात्र 19 महीनों में वहाँ पहुँच गया था, लेकिन इसकी प्राथमिक यात्रा सूर्य मंडल से बाहर जाने के लिए थी।
अंतरिक्ष यात्राओं में सिर्फ रफ़्तार ही मायने नहीं रखती, बल्कि सही रास्ता, सही योजना और ऊर्जा की खपत भी महत्वपूर्ण होती है। वैज्ञानिकों को हर मिशन के लिए गुरुत्वाकर्षण बल, उड़ान तकनीक और ईंधन प्रबंधन का गहराई से अध्ययन करना पड़ता है।
चांद तक का सफर: 3 दिन से लेकर 48 दिन तक हो सकता है।
मंगल तक का सफर: 7 से 10 महीने लग सकते हैं।
बृहस्पति तक का सफर: 19 महीने से लेकर 6 साल तक का हो सकता है।
भविष्य में स्पेस टेक्नोलॉजी के और विकसित होने से अंतरिक्ष यात्राएं और भी तेज़ और कुशल हो सकती हैं। एक दिन शायद हम इन दूरियों को घंटों या दिनों में पूरा कर सकें!
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