घुड़सवारी जैसे साहसिक खेल में भारत की बेटियों की भागीदारी अब तक सीमित रही है, लेकिन राजस्थान की दिव्यकृति सिंह ने इस धारणा को बदलते हुए इतिहास रच दिया है। उन्होंने न केवल 19वें एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता, बल्कि अर्जुन पुरस्कार पाने वाली भारत की पहली महिला घुड़सवार भी बन गईं।
बचपन से जुनून तक का सफर
22 अक्तूबर 1999 को जयपुर, राजस्थान में जन्मीं दिव्यकृति का बचपन घोड़ों के बीच बीता। उनके पिता विक्रम सिंह राठौड़, जो सेना के रिटायर्ड अफसर हैं, खुद भी घुड़सवारी में विशेष रुचि रखते थे। यही वजह थी कि दिव्यकृति ने महज पांच वर्ष की उम्र में घुड़सवारी शुरू कर दी थी। उन्होंने अजमेर के मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल और जयपुर के द पैलेस स्कूल से पढ़ाई की। स्कूल में खेल गतिविधियों के दौरान उन्होंने घुड़सवारी को अपने करियर के रूप में चुना और कड़ी मेहनत से आगे बढ़ती रहीं।
संघर्ष और सफलता की कहानी
घुड़सवारी में शीर्ष मुकाम तक पहुंचने के लिए दिव्यकृति को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने यूरोप के कई देशों (नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क) और अमेरिका के वेलिंगटन-फ्लोरिडा में विशेष प्रशिक्षण लिया। उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि 2023 में चीन में हुए 19वें एशियाई खेलों में उन्होंने भारतीय ड्रेस टीम का हिस्सा बनकर स्वर्ण पदक जीता। इससे पहले, उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीते थे।
उल्लेखनीय उपलब्धियां
एशियाई खेल 2023: घुड़सवारी में स्वर्ण पदक जीतकर 41 साल बाद भारत को यह उपलब्धि दिलाई।
अर्जुन पुरस्कार 2024: भारत की पहली महिला घुड़सवार बनीं जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला।
राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं: जूनियर राष्ट्रीय घुड़सवारी चैंपियनशिप (2018-19) में स्वर्ण, (2016-17) में रजत और कांस्य पदक।
पोलो चैंपियनशिप: 2016 और 2017 में IPA जूनियर नेशनल पोलो चैंपियनशिप की विजेता।
प्रेरणा बनीं दिव्यकृति
दिव्यकृति सिंह ने घुड़सवारी के क्षेत्र में अपनी लगन और मेहनत से महिलाओं के लिए एक नई राह बनाई है। उनकी सफलता उन बेटियों के लिए प्रेरणा है, जो इस खेल में अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। भारत के घुड़सवारी इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
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