फरवरी 2025 में भारत की थोक मूल्य मुद्रास्फीति दर (डब्ल्यूपीआई) बढ़कर 2.38 प्रतिशत हो गई, जो जनवरी में 2.31 प्रतिशत थी। यह वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य उत्पादों, गैर-खाद्य वस्तुओं, अन्य विनिर्माण वस्तुओं और कपड़ा निर्माण जैसी श्रेणियों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुई है। सोमवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यह बढ़ोतरी अर्थशास्त्रियों के पूर्वानुमान 2.36% से थोड़ी अधिक रही।
थोक खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट
हालांकि, थोक खाद्य मुद्रास्फीति में जनवरी की तुलना में गिरावट देखने को मिली। जनवरी में यह 7.47% थी, जो फरवरी में घटकर 5.94% रह गई। प्राथमिक वस्तुओं की मुद्रास्फीति भी जनवरी के 4.69% से गिरकर फरवरी में 2.81% हो गई। यह दर्शाता है कि कुछ आवश्यक खाद्य सामग्रियों की कीमतों में नरमी आई है।
ईंधन और बिजली क्षेत्र में राहत
ईंधन और बिजली की थोक कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई। फरवरी में इनकी कीमतें 0.71% घटीं, जबकि जनवरी में इसमें 2.78% की गिरावट आई थी। यह उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात हो सकती है, क्योंकि ऊर्जा लागत में कमी से उत्पादन की कुल लागत में भी कमी आ सकती है।
विनिर्मित उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी
दूसरी ओर, विनिर्मित उत्पादों की कीमतों में वृद्धि जारी रही। जनवरी में इनकी कीमतों में 2.51% की वृद्धि हुई थी, जो फरवरी में बढ़कर 2.86% हो गई। यह संकेत देता है कि औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें धीरे-धीरे बढ़ रही हैं, जिससे व्यापारियों और उपभोक्ताओं दोनों को सतर्क रहने की आवश्यकता होगी।
खुदरा मुद्रास्फीति में राहत
हालांकि थोक महंगाई दर में मामूली वृद्धि हुई, लेकिन उपभोक्ताओं के लिए राहत की खबर यह है कि खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में घटकर 3.61% रह गई, जो पिछले सात महीनों में सबसे निचला स्तर है। जनवरी में यह 4.31% थी। यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में कमी के कारण हुई। खाद्य मुद्रास्फीति, जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) बास्केट का लगभग आधा हिस्सा होती है, जनवरी के 5.97% से घटकर फरवरी में 3.75% रह गई।
भारत के निर्यात में गिरावट जारी
सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत का निर्यात फरवरी में लगातार चौथे महीने घटकर 36.91 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया। यह दर्शाता है कि वैश्विक मांग में कमजोरी और घरेलू उत्पादन की चुनौतियां निर्यात क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं।
थोक महंगाई दर में वृद्धि और खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट से यह स्पष्ट होता है कि भारत में उपभोक्ताओं को कुछ राहत तो मिली है, लेकिन औद्योगिक क्षेत्र में लागत बढ़ रही है। ईंधन और बिजली की कीमतों में गिरावट सकारात्मक संकेत है, लेकिन निर्यात में कमी चिंता का विषय बनी हुई है। आने वाले महीनों में सरकार और आरबीआई की नीतियों पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी, ताकि आर्थिक संतुलन बनाए रखा जा सके।
Discussion about this post