महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र पर गरमाई राजनीति: इतिहास व हिंदुत्व की टकराहट

महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र ‘सामना’ ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए अपने संपादकीय में कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों पर तीखा हमला बोला है। सामना का कहना है कि कुछ तत्व औरंगजेब की कब्र को उसी तरह ध्वस्त करने की धमकी दे रहे हैं, जैसे बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। इस तरह की मानसिकता को ‘सामना’ ने महाराष्ट्र के वीर इतिहास और परंपरा का अपमान करार दिया है।
शिवसेना (यूबीटी) का प्रहार
‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है कि यह तथाकथित नए हिंदुत्ववादी महाराष्ट्र की गौरवशाली परंपरा के दुश्मन हैं। वे महाराष्ट्र के माहौल को जहरीला बनाकर खुद को ‘हिंदू तालिबान’ के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। संपादकीय में यह भी कहा गया है कि हिंदू धर्म के इस विकृत स्वरूप को दिखाकर वे शिवाजी महाराज के ‘हिंदू स्वराज’ का अपमान कर रहे हैं।
इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप
संपादकीय के अनुसार, कुछ लोग महाराष्ट्र के वास्तविक इतिहास को मिटाने का प्रयास कर रहे हैं। शिवाजी महाराज और मराठाओं ने औरंगजेब से 25 वर्षों तक संघर्ष किया। इतने लंबे संघर्ष के बाद भी औरंगजेब महाराष्ट्र को जीतने में असफल रहा और पराजय के बाद यहीं उसका अंत हुआ। यही कारण है कि उसकी कब्र महाराष्ट्र में मौजूद है, जिसे अब हटाने की मांग की जा रही है।
औरंगजेब की कब्र: पराजय का प्रतीक?
‘सामना’ ने अपने लेख में कहा है कि औरंगजेब की कब्र महाराष्ट्र के शौर्य का प्रतीक है। यह इस बात का गवाह है कि मराठाओं ने मुगलों की सत्ता को धूल चटा दी थी। दक्षिण भारत को जीतने के उद्देश्य से औरंगजेब ने 25 वर्षों तक महाराष्ट्र में संघर्ष किया, लेकिन वह मराठाओं की ताकत और रणनीति के आगे झुक गया। उसके सपनों को मराठाओं ने ध्वस्त कर दिया। यही कारण है कि औरंगजेब की कब्र को महाराष्ट्र के गौरव का प्रतीक माना जाना चाहिए, न कि इसे ध्वस्त करने की मांग उठानी चाहिए।
दक्षिणपंथी संगठनों का आक्रोश
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ नेताओं के समर्थन के बाद बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इस मुद्दे को और अधिक उग्र बना दिया है। उन्होंने सरकार से जल्द से जल्द औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग की है। इतना ही नहीं, उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो वे ‘कारसेवा’ करेंगे। इन संगठनों ने महाराष्ट्र सरकार को 17 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया है और कानूनी रूप से कब्र को हटाने की मांग की है।
फडणवीस सरकार पर दवाब
इस पूरे विवाद के बीच ‘सामना’ ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से अपील की है कि वे शिवाजी महाराज के नाम पर हो रही इस राजनीति को रोकें। संपादकीय में चेतावनी दी गई है कि इस तरह की नफरत भरी राजनीति महाराष्ट्र की ऐतिहासिक विरासत को नष्ट कर सकती है।
राजनीतिक भविष्य और नतीजे
यह मुद्दा अब केवल एक धार्मिक या ऐतिहासिक बहस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह महाराष्ट्र की राजनीति का एक प्रमुख विवाद बन चुका है। शिवसेना (यूबीटी) और भाजपा के बीच यह नया टकराव राज्य की सियासत को और गर्मा सकता है। देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में यह विवाद किस दिशा में जाता है और महाराष्ट्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है।
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