भारत में भाषा और प्रतीकों को लेकर चल रही बहस में तमिलनाडु सरकार के हालिया कदम ने एक नया मोड़ ला दिया है। राज्य सरकार ने अपने बजट के आधिकारिक लोगो में भारतीय रुपये (₹) के चिह्न को तमिल अक्षर ‘ரூ’ से बदल दिया है। यह पहली बार हुआ है जब किसी राज्य सरकार ने भारतीय रुपये के प्रतीक में बदलाव किया है। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन द्वारा बजट पेश करने से पहले ही यह मामला सामने आ गया, जिससे एक नई बहस शुरू हो गई है।
रुपये के प्रतीक में बदलाव: विवाद और प्रश्न
तमिलनाडु सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं। भारत में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है, जिसमें डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) ने हिंदी को थोपने का विरोध किया है। अब राज्य सरकार के इस कदम से यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या किसी राज्य को रुपये के आधिकारिक चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है?
भारत सरकार ने 15 जुलाई 2010 को रुपये (₹) के आधिकारिक प्रतीक को मंजूरी दी थी। यह प्रतीक देवनागरी लिपि के ‘र’ और रोमन लिपि के ‘R’ को मिलाकर बनाया गया था, जिसमें एक क्षैतिज रेखा जोड़कर इसे विशेष पहचान दी गई थी। इस प्रतीक को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT-बॉम्बे) के पोस्ट ग्रेजुएट डिजाइनर डी. उदय कुमार ने डिज़ाइन किया था, जो तमिलनाडु के डीएमके के पूर्व विधायक के बेटे हैं।
क्या रुपये का चिह्न बदला जा सकता है?
यह सवाल उठता है कि क्या तमिलनाडु सरकार के पास रुपये के आधिकारिक चिह्न को बदलने का अधिकार है?
भारत में राष्ट्रीय प्रतीकों से जुड़े मामलों को “भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) अधिनियम 2005” के तहत नियंत्रित किया जाता है। इस अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव कर सकती है, लेकिन रुपये के चिह्न को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है। ऐसे में कानूनी रूप से यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य सरकार का यह कदम वैध है या नहीं।
विशेषज्ञों की राय में, यदि रुपये का चिह्न राष्ट्रीय प्रतीक होता, तो इसमें बदलाव करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता। हालांकि, मौजूदा कानून में रुपये के प्रतीक को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।
भाषाई विविधता और राजनीतिक प्रभाव
भारत 22 आधिकारिक भाषाओं वाला देश है, जहां तमिल भाषा को भी मान्यता प्राप्त है। तमिलनाडु सरकार द्वारा तमिल प्रतीक ‘ரூ’ को रुपये के चिह्न के रूप में उपयोग करना राज्य की क्षेत्रीय पहचान को प्राथमिकता देने का संकेत देता है। डीएमके सरकार लंबे समय से हिंदी और केंद्र सरकार की कुछ नीतियों के विरोध में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है।
राजनीतिक दृष्टि से यह कदम डीएमके की क्षेत्रीय अस्मिता और केंद्र के प्रति विरोध की नीति को दर्शाता है। इसके अलावा, यह उन लोगों के लिए समर्थन जुटाने का एक प्रयास हो सकता है जो स्थानीय भाषाओं के व्यापक उपयोग की मांग करते हैं।
क्या केंद्र सरकार कार्रवाई कर सकती है?
हालांकि रुपये के चिह्न में बदलाव पर कोई स्पष्ट कानूनी प्रतिबंध नहीं है, फिर भी केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। यदि यह मुद्दा बड़ा राजनीतिक विवाद बनता है, तो केंद्र सरकार रुपये के चिह्न के उपयोग को लेकर सख्त दिशा-निर्देश जारी कर सकती है।
तमिलनाडु सरकार द्वारा रुपये के चिह्न में बदलाव अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम है, जिसने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पहचान को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारें क्या रुख अपनाती हैं। भाषा, संस्कृति और राजनीति के इस संगम में यह घटना भविष्य में भारत की संघीय संरचना और प्रतीकों के उपयोग को लेकर नए दृष्टिकोण ला सकती है।
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