भारत में इंटरनेट की पहुंच को नए आयाम देने के लिए टेलीकॉम दिग्गज जियो और एयरटेल ने स्पेसएक्स के साथ साझेदारी की है। एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स द्वारा संचालित स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस को भारत में लाने के लिए दोनों कंपनियों ने मार्च 2025 में समझौता किया है। इस डील के जरिए देश के दूरदराज और ग्रामीण इलाकों में हाई-स्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।
डील की स्थिति और आवश्यक मंजूरी
यह डील पूरी तरह से भारत सरकार से आवश्यक लाइसेंस और सुरक्षा मंजूरी मिलने पर निर्भर है। स्टारलिंक को भारत में अपनी सेवाएं शुरू करने के लिए डेटा लोकलाइजेशन और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल्स का पालन करना होगा। अगर सभी आवश्यक अनुमतियां मिल जाती हैं, तो 2025 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) तक यह सेवा शुरू हो सकती है। हालांकि, किसी भी अप्रत्याशित देरी की स्थिति में लॉन्च को आगे बढ़ाया जा सकता है।
स्टारलिंक क्या है और यह कैसे काम करता है?
स्टारलिंक एक सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा है जो लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थित हजारों सैटेलाइट्स के कॉन्स्टेलेशन के माध्यम से हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान करती है। इसका मुख्य उद्देश्य उन इलाकों में इंटरनेट पहुंचाना है, जहां पारंपरिक ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
स्टारलिंक सेवा के लिए यूजर्स को एक छोटा सैटेलाइट डिश और एक राउटर मिलता है, जिसे ‘Dishy McFlatface’ के नाम से भी जाना जाता है। यह डिश सैटेलाइट्स से सिग्नल रिसीव कर इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करती है। इसके अलावा, स्टारलिंक अब डायरेक्ट-टू-सेल सेवा पर भी काम कर रहा है, जिससे मोबाइल फोन्स को बिना किसी अतिरिक्त उपकरण के सैटेलाइट से जोड़ा जा सकेगा।
जियो और एयरटेल के मौजूदा इंटरनेट मॉडल से कैसे अलग है स्टारलिंक?
जियो और एयरटेल वर्तमान में फाइबर ऑप्टिक्स और मोबाइल टॉवर्स के माध्यम से इंटरनेट सेवाएं प्रदान करते हैं।
स्टारलिंक, सैटेलाइट नेटवर्क पर आधारित है और यह छोटे सैटेलाइट्स, ग्राउंड स्टेशन और यूजर टर्मिनल के माध्यम से काम करता है।
स्टारलिंक के सैटेलाइट्स पारंपरिक सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं की तुलना में धरती के करीब (लगभग 550KM) स्थित होते हैं, जिससे नेटवर्क की लेटेंसी कम रहती है।
यह सेवा 150 Mbps तक की इंटरनेट स्पीड प्रदान कर सकती है, जो फाइबर ब्रॉडबैंड से कम, लेकिन पारंपरिक सैटेलाइट इंटरनेट से बेहतर है।
स्टारलिंक के भारत में फायदे
ग्रामीण इंटरनेट कनेक्टिविटी: सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2024 तक भारत की ग्रामीण टेली-डेंसिटी मात्र 59.1% थी। स्टारलिंक की सेवा इस गैप को कम कर सकती है।
आपातकालीन परिस्थितियों में मदद: प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़ और भूकंप के दौरान जब पारंपरिक नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तब भी स्टारलिंक की सेवा उपयोगी होगी।
ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा: दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को हाई-स्पीड इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स का लाभ मिलेगा।
व्यावसायिक और सुरक्षा उपयोग: रिमोट लोकेशंस में काम करने वाली कंपनियों और सरकारी एजेंसियों के लिए यह सेवा बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है।
स्टारलिंक की संभावित कीमत और प्लान्स
अभी तक भारत में स्टारलिंक की आधिकारिक मूल्य निर्धारण की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन भूटान के प्लान्स को देखते हुए इसकी संभावित कीमत का अनुमान लगाया जा सकता है:
Residential Lite Plan: ₹3,000 प्रति माह (स्पीड: 23-100 Mbps)
Standard Residential Plan: ₹4,200 प्रति माह (स्पीड: 25-110 Mbps)
भारत में डिजिटल सर्विसेज पर 30% अतिरिक्त टैक्स के कारण स्टारलिंक की कीमतें थोड़ी अधिक हो सकती हैं, जो ₹3,500 से ₹4,500 प्रति माह तक हो सकती हैं।
भारतीय सैटेलाइट इंटरनेट बाजार में संभावनाएं और चुनौतियां
KPMG की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सैटेलाइट इंटरनेट बाजार 2028 तक ₹1.7 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। हालांकि, सरकारी मंजूरी, सुरक्षा चिंताएं और टेलीकॉम कंपनियों का प्रतिस्पर्धी रुख स्टारलिंक के लिए कुछ चुनौतियां पेश कर सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएं
भारती ग्रुप के फाउंडर सुनील मित्तल ने कहा है कि सैटेलाइट कम्युनिकेशन, 4G, 5G और 6G टेक्नोलॉजी का पूरक बन सकता है। इससे लोग अपने मोबाइल फोन्स को दुनिया के सबसे दूरदराज इलाकों तक ले जा सकेंगे, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी का दायरा आसमान और समुद्र तक भी विस्तृत हो सकेगा।
स्टारलिंक का भारत में आगमन देश के डिजिटल इकोसिस्टम के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। हालांकि, इसकी सफलता पूरी तरह से सरकारी स्वीकृति, सुरक्षा मानकों और किफायती मूल्य निर्धारण पर निर्भर करेगी। अगर सब कुछ सही दिशा में आगे बढ़ता है, तो भारत में इंटरनेट क्रांति का एक नया अध्याय लिखा जाएगा।
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