भारत के बुनियादी ढांचे के विकास में जिन महान हस्तियों ने अपना योगदान दिया, उनमें से एक नाम है शकुंतला ए. भगत का। वह भारत की पहली महिला सिविल इंजीनियर थीं, जिन्होंने कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक 69 पुलों का निर्माण किया। उनके द्वारा विकसित किए गए पुल निर्माण तकनीकों ने न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
शकुंतला ए. भगत का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके सपने असाधारण थे। 1953 में, उन्होंने वीरमाता जीजाबाई प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की, जिससे वह इस क्षेत्र में भारत की पहली महिला स्नातक बनीं। उनके अंदर सीखने की अपार जिज्ञासा थी और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में ही इंजीनियरिंग के क्षेत्र में शोध और विकास की महत्वता को समझ लिया था।
क्वाड्रिकॉन की स्थापना और नवाचार
1970 में, शकुंतला और उनके पति अनिरुद्ध एस. भगत, जो एक मैकेनिकल इंजीनियर थे, ने पुल निर्माण फर्म ‘क्वाड्रिकॉन’ की स्थापना की। इस कंपनी की विशेषता उनके पेटेंट कराए गए आधुनिक पुल डिज़ाइन थे। इन डिजाइनों का उपयोग केवल भारत में ही नहीं, बल्कि यूके, अमेरिका और जर्मनी सहित कई देशों में किया गया।
शकुंतला और उनके पति ने ‘टोटल सिस्टम’ पद्धति विकसित की, जो पुल निर्माण के दौरान असेंबली प्रक्रिया में मानकीकृत मॉड्यूलर भागों का उपयोग करती थी। यह तकनीक विभिन्न प्रकार के पुलों के निर्माण में ट्रैफिक की चौड़ाई और भार वहन करने की क्षमता के अनुसार उपयुक्त होती थी।
पहला बड़ा प्रोजेक्ट और चुनौतियां
1972 में, हिमाचल प्रदेश के स्पीति में ‘टोटल सिस्टम पद्धति’ का उपयोग करके पहला क्वाड्रिकॉन स्टील पुल बनाया गया। केवल चार महीनों में, दो छोटे पुलों का निर्माण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया। यह एक क्रांतिकारी उपलब्धि थी और जल्द ही इस तकनीक की जानकारी अन्य जिलों और राज्यों तक फैलने लगी।
हालांकि, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत में शकुंतला और उनके पति को कई आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सरकारी विभागों और निवेशकों ने इस तकनीक में निवेश करने से झिझक दिखाई, क्योंकि यह अत्यंत जटिल और प्रयोगात्मक थी। लेकिन शकुंतला और अनिरुद्ध भगत ने अपने स्वयं के संसाधनों से इस परियोजना को सफल बनाया।
प्रौद्योगिकी और नवाचार में योगदान
शकुंतला भगत ने स्टील के उपयोग को सरल और प्रभावी बनाने के लिए ‘यूनीशर कनेक्टर’ विकसित किया। यह एक ऐसा उपकरण था, जिससे स्टील संरचनाओं को जोड़ना आसान हो गया। इस खोज के लिए 1972 में उन्हें ‘इंवेंशन प्रोमोशन बोर्ड’ द्वारा सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनकी कंपनी ने 200 से अधिक क्वाड्रिकॉन स्टील पुल डिज़ाइन किए, जिनमें से अधिकांश पुल हिमालयी क्षेत्रों में स्थित हैं, जहां पारंपरिक निर्माण तकनीकों का उपयोग करना कठिन होता है।
अंतरराष्ट्रीय पहचान और उपलब्धियां
शकुंतला भगत का योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं था। उन्होंने लंदन के ‘सीमेंट एंड कंक्रीट एसोसिएशन’ के लिए शोध कार्य किया और ‘इंडियन रोड कांग्रेस’ की सदस्य भी रहीं। उनकी कंपनी ने संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम में भी पुल निर्माण परियोजनाओं पर काम किया।
1993 में, उन्हें ‘वुमन ऑफ द ईयर’ के खिताब से नवाजा गया। उनके असाधारण योगदान के कारण उन्हें विश्व स्तर पर पहचान मिली और उन्होंने कई महिलाओं के लिए सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रेरणा बनने का कार्य किया।
यादगार विरासत
2012 में, 79 वर्ष की आयु में शकुंतला भगत का निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा किया गया कार्य और उनके नवाचार आज भी भारत के बुनियादी ढांचे को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। उनकी कंपनी ‘क्वाड्रिकॉन’ आज भी सक्रिय है और उनके द्वारा विकसित किए गए पुल देश के विभिन्न हिस्सों में मजबूती से खड़े हैं।
शकुंतला ए. भगत न केवल भारत की पहली महिला सिविल इंजीनियर थीं, बल्कि वे एक नवोन्मेषी विचारक और प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी थीं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि इच्छाशक्ति, दृढ़ निश्चय और तकनीकी ज्ञान के बल पर कोई भी व्यक्ति असंभव को संभव बना सकता है।
उनकी उपलब्धियां भारतीय महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं और यह दर्शाती हैं कि सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है। शकुंतला भगत का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर हम मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें, तो कोई भी बाधा हमें सफलता पाने से नहीं रोक सकती।
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