बोफोर्स रिश्वत कांड की जांच में बड़ा खुलासा होने की संभावना जताई जा रही है। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने इस घोटाले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध (लेटर रोटेटरी) भेजा है। सीबीआई ने अमेरिका में रहने वाले निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन को खोजने और उनसे पूछताछ करने के लिए यह कदम उठाया है।
माइकल हर्शमैन और उनका दावा
माइकल हर्शमैन, जो कि फेयरफैक्स समूह के प्रमुख हैं, ने 1980 के दशक के दौरान हुए 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत कांड से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करने की इच्छा जताई थी। वर्ष 2017 में जब वे भारत आए थे, तब उन्होंने विभिन्न मंचों पर खुलासा किया था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस घोटाले की जांच को पटरी से उतारने का प्रयास किया था। उन्होंने सीबीआई को सहयोग देने की भी बात कही थी।
एक इंटरव्यू के दौरान हर्शमैन ने दावा किया था कि उन्हें 1986 में भारत के वित्त मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति का उद्देश्य भारतीयों द्वारा विदेशों में मुद्रा नियंत्रण कानूनों के उल्लंघन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करना था। इसी दौरान उन्होंने बोफोर्स सौदे से संबंधित कई अहम जानकारियां हासिल की थीं।
सीबीआई की जांच और न्यायिक अनुरोध
सीबीआई ने हर्शमैन की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज और उनकी रिपोर्ट की जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन उस समय के रिकॉर्ड एजेंसी को उपलब्ध नहीं कराए जा सके। इसके बाद सीबीआई ने 2017 में इस मामले की उचित प्रक्रिया के तहत जांच करने की घोषणा की।
सीबीआई द्वारा अमेरिका को भेजे गए न्यायिक अनुरोध (लेटर रोटेटरी) की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि 8 नवंबर, 2023, 21 दिसंबर, 2023, 13 मई, 2024 और 14 अगस्त, 2024 को अमेरिकी अधिकारियों को भेजे गए पत्रों और अनुस्मारकों से कोई उत्तर नहीं मिला था।
लेटर रोटेटरी एक आधिकारिक अनुरोध होता है, जिसे एक देश की अदालत दूसरे देश की अदालत को भेजती है ताकि किसी आपराधिक मामले की जांच या अभियोजन में सहयोग मिल सके।
बोफोर्स घोटाले की पृष्ठभूमि
यह घोटाला स्वीडिश कंपनी बोफोर्स और भारत के बीच हुए 1,437 करोड़ रुपये के रक्षा सौदे से जुड़ा है। इस सौदे के तहत भारत को 400 155 मिमी फील्ड हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति की जानी थी। हालांकि, बाद में आरोप लगे कि इस सौदे को हासिल करने के लिए भारतीय राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों को 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी।
स्वीडिश रेडियो चैनल ने 1987 में इस मामले का खुलासा किया था, जिससे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक संकट बन गया। 1990 में सीबीआई ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की थी। विपक्षी दलों ने कांग्रेस को घेरने के लिए इस घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया।
बोफोर्स तोपों की भूमिका और विवाद
दिलचस्प बात यह है कि बोफोर्स हॉवित्जर तोपों ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद, इस सौदे पर लगे रिश्वत के आरोपों ने दशकों तक भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। यह घोटाला भारत के सबसे चर्चित रक्षा घोटालों में से एक माना जाता है।
क्या होगा आगे?
सीबीआई के इस नए प्रयास से उम्मीद जताई जा रही है कि माइकल हर्शमैन से पूछताछ के बाद इस घोटाले से जुड़ी कई नई जानकारियां सामने आ सकती हैं। यदि हर्शमैन के पास ठोस सबूत हैं और वे भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करते हैं, तो यह जांच एक नया मोड़ ले सकती है।
अब देखना यह होगा कि अमेरिका इस न्यायिक अनुरोध पर किस तरह की प्रतिक्रिया देता है और क्या सीबीआई इस मामले में किसी ठोस नतीजे तक पहुंच पाती है।
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