भारतीय नौसेना की दो जांबाज महिला अधिकारी, लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना के और लेफ्टिनेंट कमांडर रूपा ए, ने नाविक सागर परिक्रमा-2 अभियान के तहत एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। इन बहादुर नौसेनिकों ने अपनी नौका आईएनएसवी तारिणी के साथ दुनिया के सबसे खतरनाक समुद्री मार्गों में से एक, केप होर्न, को सफलतापूर्वक पार कर लिया है। भारतीय नौसेना ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि की पुष्टि करते हुए दोनों अधिकारियों की साहसिक यात्रा की सराहना की है।
केप होर्न – दुनिया का सबसे कठिन समुद्री मार्ग
केप होर्न दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित है और इसे दुनिया का सबसे चुनौतीपूर्ण समुद्री मार्ग माना जाता है। यह स्थान अंटार्कटिका से मात्र 800 किलोमीटर दूर है और खुले समुद्र की भयावह परिस्थितियों के लिए कुख्यात है। यहाँ तेज़ हवाएँ, विशाल लहरें, ठंडा मौसम और अनियमित जलवायु परिस्थितियाँ किसी भी नौसेनिक के लिए गंभीर चुनौती पेश करती हैं।
ड्रेक पैसेज से गुजरते हुए भारतीय महिला अफसरों ने इस कठिन समुद्री क्षेत्र को सफलतापूर्वक पार किया। केप होर्न को पार करने वाले नाविकों को सम्मानपूर्वक “केप होर्नर्स” कहा जाता है, और अब भारतीय नौसेना की ये दो महिला अधिकारी भी इस विशिष्ट समूह में शामिल हो गई हैं।
नाविक सागर परिक्रमा-2: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम
नाविक सागर परिक्रमा-2 भारतीय नौसेना का एक महत्त्वाकांक्षी अभियान है, जिसमें नौसेना की महिला अधिकारी वैज्ञानिक खोज और आत्मनिर्भर भारत के संदेश के साथ दुनिया का चक्कर लगा रही हैं। भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी ने बीते वर्ष इस ऐतिहासिक अभियान को आईएनएसवी तारिणी को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था।
इस अभियान के तहत
नौसेना की महिला अधिकारी चार महाद्वीपों, तीन महासागरों और तीन चुनौतीपूर्ण केप्स को पार करेंगी।
240 दिनों में 23,400 नॉटिकल मील की दूरी तय करेंगी।
यह अभियान वैज्ञानिक अनुसंधान और महिला सशक्तिकरण का एक प्रतीक बनकर उभर रहा है।
केप होर्न को पार करने की चुनौती
केप होर्न को पार करने के लिए एक नाविक को न केवल गहरे समुद्री यात्रा का अनुभव होना आवश्यक है, बल्कि मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझने की शारीरिक और मानसिक क्षमता भी होनी चाहिए। दशकों तक यह मार्ग व्यापार के लिए मुख्य केंद्र हुआ करता था, लेकिन 1914 में पनामा नहर के खुलने के बाद केप होर्न से गुजरने वाले जहाजों की संख्या में भारी गिरावट आई। इसके बावजूद, यह मार्ग आज भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नाविकों के लिए एक चुनौती बना हुआ है।
महिला सशक्तिकरण और नौसेना के लिए मील का पत्थर
भारतीय नौसेना में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का यह अभियान एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना के और लेफ्टिनेंट कमांडर रूपा ए ने अपने साहस और प्रतिबद्धता से यह साबित कर दिया कि वे किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं।
उनकी यह उपलब्धि न केवल भारतीय नौसेना के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी, बल्कि देश में महिला सशक्तिकरण और साहस की प्रेरणा भी बनेगी। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इस तरह के अभियानों को बढ़ावा देना देश के तकनीकी और वैज्ञानिक कौशल को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में सहायक होगा।
भारतीय नौसेना की इन जांबाज महिला अफसरों की यह उपलब्धि न केवल भारतीय सेना के लिए गौरव की बात है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। केप होर्न जैसी कठिन चुनौती को पार कर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकती हैं। नाविक सागर परिक्रमा-2 अभियान न केवल नौसेना के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत बन चुका है।
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