मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने 9 फरवरी 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद राज्यपाल अजय भल्ला ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की। इस फैसले के साथ ही मणिपुर विधानसभा को भी निलंबित कर दिया गया है।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से जारी हिंसा के कारण बीरेन सिंह सरकार पर भारी दबाव था। पिछले 21 महीनों से जारी जातीय संघर्ष में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इस हिंसा और प्रशासन की विफलता को लेकर बीरेन सिंह की लगातार आलोचना हो रही थी, जिसके चलते उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया।
गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का मानना है कि मणिपुर की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल पा रही है। इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है।
राजनीतिक अस्थिरता और भाजपा का निर्णय
बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई थी। भाजपा नेतृत्व मुख्यमंत्री पद के लिए कोई सर्वसम्मत उम्मीदवार तय नहीं कर पाया। भाजपा के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा और पार्टी विधायकों के बीच कई दौर की चर्चा के बावजूद कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका। इस नेतृत्व संकट के कारण अंततः राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय लिया गया।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भाजपा पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह भाजपा सरकार की अक्षमता की स्वीकृति है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब मणिपुर के हालात से मुंह नहीं मोड़ सकते। राहुल गांधी ने यह भी सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री अब मणिपुर का दौरा करेंगे और राज्य में शांति बहाल करने के लिए अपनी योजना जनता के सामने रखेंगे?
राष्ट्रपति शासन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था
मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है। राज्यपाल अजय भल्ला और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के अधिकारियों के बीच इस संबंध में बैठक हुई। राज्यपाल को सीआरपीएफ की तैनाती और सुरक्षा अभियानों की विस्तृत जानकारी दी गई।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का इतिहास
मणिपुर में यह पहला मौका नहीं है जब राष्ट्रपति शासन लगाया गया हो। वर्ष 1963 के बाद से अब तक 11 बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है। सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन 1972 में 2 साल 157 दिनों तक चला था।
वर्ष | अवधि |
---|---|
12 जनवरी 1967 – 19 मार्च 1967 | 66 दिन |
25 अक्तूबर 1967 – 18 फरवरी 1968 | 116 दिन |
17 अक्तूबर 1969 – 22 मार्च 1972 | 2 साल 157 दिन |
28 मार्च 1973 – 3 मार्च 1974 | 340 दिन |
16 मई 1977 – 28 जून 1977 | 43 दिन |
14 नवंबर 1979 – 13 जनवरी 1980 | 60 दिन |
28 फरवरी 1981 – 18 जून 1981 | 110 दिन |
7 जनवरी 1992 – 7 अप्रैल 1992 | 91 दिन |
31 दिसंबर 1993 – 13 दिसंबर 1994 | 347 दिन |
2 जून 2001 – 6 मार्च 2002 | 277 दिन |
राष्ट्रपति शासन कब लगाया जाता है?
संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन निम्नलिखित परिस्थितियों में लागू किया जाता है:
जब चुनाव के बाद किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिले।
जब बहुमत प्राप्त पार्टी सरकार बनाने से इनकार कर दे और कोई अन्य दल सरकार बनाने की स्थिति में न हो।
जब राज्य सरकार विधानसभा में हार के बाद इस्तीफा दे और कोई अन्य दल सरकार बनाने को तैयार न हो।
जब राज्य सरकार केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन न करे।
जब राज्य सरकार जानबूझकर आंतरिक अशांति को बढ़ावा दे।
जब राज्य सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने में विफल हो।
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