सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कानूनों का उद्देश्य पूरा करने के लिए समाज को अपनी सोच और रवैया बदलना होगा। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्रा की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले में अदालत कुछ नहीं कर सकती।
क्या थी याचिका में मांग? वकील विशाल तिवारी द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों का गलत इस्तेमाल हो रहा है। याचिका में निम्नलिखित सुझाव दिए गए थे: 1. विशेष समिति का गठन: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों, वकीलों और कानूनी विशेषज्ञों की समिति बनाई जाए, जो मौजूदा दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों की समीक्षा करे। 2. शादी में उपहारों का पंजीकरण: शादी पंजीकरण के समय उपहार और अन्य सामान को भी सूचीबद्ध किया जाए। 3. सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणियों का पालन: 2010 में आईपीसी की धारा 498ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश दिए थे, उन्हें सख्ती से लागू किया जाए। 4. पुरुषों की सुरक्षा: कानून में बदलाव कर यह सुनिश्चित किया जाए कि फर्जी मामलों में मासूम पुरुष और उनके परिवार की रक्षा हो सके।
इंजीनियर की आत्महत्या ने बढ़ाई बहस याचिका में बेंगलुरु के एक इंजीनियर आत्महत्या का मामला भी उठाया गया। इंजीनियर ने अपनी पत्नी पर कानूनी तौर पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था और कानूनों में खामियों का जिक्र करते हुए अपनी जान दे दी थी। इस घटना ने समाज में दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों के कथित गलत इस्तेमाल पर बहस छेड़ दी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “कानूनों में बदलाव से पहले समाज में बदलाव जरूरी है। यह समस्या सामाजिक है और इसे समाज के भीतर से हल करना होगा। अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।”
विरोध और समर्थन की तकरार याचिका में कहा गया था कि दहेज कानून और आईपीसी की धारा 498ए विवाहित महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, लेकिन अब इन्हें पुरुषों और उनके परिवारों को झूठे मामलों में फंसाने का हथियार बना लिया गया है। इसके परिणामस्वरूप सही मामलों पर भी सवाल खड़े होते हैं, जिससे इन कानूनों का असली उद्देश्य कमजोर हो गया है।
वहीं, कानून विशेषज्ञों का कहना है कि दहेज और घरेलू हिंसा कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं और उनका उद्देश्य सही है। हालांकि, कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए समाज और कानून दोनों को मिलकर काम करना होगा।
समाज में बदलाव की जरूरत सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता और सही मानसिकता का निर्माण करना आवश्यक है। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि समाज को अपनी सोच बदलनी होगी और महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की भी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों के गलत इस्तेमाल की समस्या ने समाज और न्याय व्यवस्था के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाज को आत्मचिंतन का संदेश देता है। जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे, तब तक कानूनों के उद्देश्य पूर्ण रूप से पूरे नहीं हो पाएंगे।
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