“जहां आपकी हिम्मत टूटती है, वहीं सफलता आपका इंतजार कर रही होती है।” यह कहना है डॉ. पृथिका चारी का, जिनका जीवन साहस, संघर्ष और प्रेरणा की मिसाल है। चेन्नई की रहने वाली 76 वर्षीय डॉ. पृथिका, न केवल एक कुशल न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट हैं, बल्कि कैंसर सर्वाइवर भी हैं। उन्होंने अपने कठिन सफर को न केवल जिया, बल्कि दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए इसे प्रेरणा का जरिया भी बनाया।
बचपन का सपना: डॉक्टर बनने का जुनून 1947 में जन्मीं डॉ. पृथिका चारी का बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था। वह कहती हैं, “बचपन में बच्चों के ख्वाब ऐसे ही होते हैं, मेरा भी यही था। मुझे ‘डॉक्टर-डॉक्टर’ खेलना बहुत पसंद था और तभी से मैंने ठान लिया था कि मुझे लोगों की सेवा करनी है।”
पढ़ाई में शुरू से ही तेज और समर्पित डॉ. पृथिका ने चेन्नई से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और मद्रास मेडिकल कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। दिलचस्प बात यह है कि एमडी की पढ़ाई के दौरान वह 20 लड़कों के बीच इकलौती लड़की थीं। यह उनके अदम्य साहस और लगन को दर्शाता है।
मिर्गी के इलाज में विशेषज्ञता डॉ. पृथिका ने न केवल न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी की पढ़ाई की, बल्कि एपिलेप्टोलॉजी (मिर्गी के मरीजों का इलाज) में भी विशेषज्ञता हासिल की। उन्होंने बताया, “मिर्गी का इलाज करने वाले डॉक्टर कम होते हैं, क्योंकि इस विषय को चुनने वाले छात्र बहुत कम होते हैं। मैंने इस क्षेत्र को अपने करियर का हिस्सा बनाया और कई मरीजों को ठीक करने में सफलता पाई।”
1990 में न्यूरोसर्जरी क्वालिफाई करने के बाद वह देश की पांचवीं महिला न्यूरोसर्जन बनीं। यह उपलब्धि एक ऐसे समय में हासिल की गई, जब महिलाएं इस क्षेत्र में आने से कतराती थीं।
कैंसर से जंग: हार न मानने की मिसाल 2016 में, जब सबकुछ सामान्य लग रहा था, एक स्वास्थ्य जांच के दौरान पता चला कि डॉ. पृथिका को तीसरे स्टेज का कैंसर है। यह खबर उनके और उनके परिवार के लिए किसी झटके से कम नहीं थी। वह कहती हैं, “किमोथेरेपी के दौरान शरीर में जलन और असहनीय दर्द होता था। करीब डेढ़ साल तक मैंने इलाज कराया और आखिरकार कैंसर को हरा दिया।”
यह जंग उनके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुई। इस कठिन अनुभव ने उन्हें न केवल और मजबूत बनाया, बल्कि मरीजों के दर्द को बेहतर तरीके से समझने में भी मदद की।
अभी भी सक्रिय: दूसरों की सेवा में समर्पित कैंसर को हराए आठ साल हो चुके हैं और आज भी डॉ. पृथिका पूरी ऊर्जा के साथ मरीजों की सेवा कर रही हैं। वह उन मामलों को भी संभालती हैं, जिन्हें अन्य डॉक्टर लेने से कतराते हैं। उनकी जिंदगी का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है: “कभी हार मत मानो, क्योंकि हर मुश्किल के बाद सफलता आपका इंतजार कर रही होती है।”
एक प्रेरणा: डॉक्टर से आगे बढ़कर जीवन मार्गदर्शक डॉ. पृथिका का जीवन केवल चिकित्सा क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने समाज को यह सिखाया है कि किसी भी परिस्थिति में हार मानना विकल्प नहीं होना चाहिए। उनकी कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपने जीवन में कठिनाइयों से जूझ रहे हैं।
उनका कहना है, “जब आप कुछ बेहतर करने की सोचते हैं, तो समाज आपको रोकने की कोशिश करता है। लेकिन आपको खुद पर विश्वास और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण बनाए रखना चाहिए।”
डॉ. पृथिका चारी की कहानी न केवल चिकित्सा क्षेत्र के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है, जो जीवन में मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर रहा है। उनकी जीवन यात्रा यह सिखाती है कि साहस, समर्पण और संघर्ष ही सफलता की कुंजी है।
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