महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की हार के बाद आरोप-प्रत्यारोप के बीच, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने शनिवार को स्थानीय निकाय चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया। इस निर्णय ने न केवल एमवीए की एकता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि विपक्षी दलों के भीतर संभावित दरार को भी उजागर कर दिया है।
गठबंधन से अलग चुनाव लड़ने के कारण शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा कि गठबंधन में कार्यकर्ताओं को अपेक्षित अवसर नहीं मिल रहे हैं और संगठनात्मक विकास प्रभावित हो रहा है। उन्होंने इसे पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने का मुख्य कारण बताया। राउत ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी मुंबई, ठाणे, नागपुर समेत अन्य नगर निगम, जिला परिषद और पंचायत चुनाव अपनी ताकत के बलबूते पर लड़ेगी।
आप को समर्थन देकर कांग्रेस को झटका इससे पहले, उद्धव ठाकरे की पार्टी ने 5 फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को समर्थन देने की घोषणा की थी, जिससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। संजय राउत ने इस फैसले को यह कहते हुए सही ठहराया कि इंडिया ब्लॉक और महा विकास अघाड़ी का गठन लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए हुआ था, न कि स्थानीय चुनावों के लिए।
कांग्रेस और एनसीपी की प्रतिक्रिया शिवसेना (यूबीटी) के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेताओं ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव में अकेले लड़ने का निर्णय पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व करेगा। शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी (एसपी) ने भी इस पर असहमति जताई। एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड ने कहा, “अगर वे अकेले जाना चाहते हैं, तो हम उन्हें नहीं रोक सकते। लेकिन इस फैसले से एमवीए गठबंधन की चुनावी संभावनाएं प्रभावित होंगी।”
गठबंधन में समन्वय की कमी संजय राउत ने कांग्रेस पर एमवीए में समन्वय की कमी का आरोप लगाते हुए कहा कि गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते, कांग्रेस को बैठक बुलानी चाहिए थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद इंडिया ब्लॉक ने एक भी बैठक आयोजित नहीं की।
सुप्रिया सुले और विपक्ष का रुख एनसीपी की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने इसे ज्यादा गंभीर मुद्दा मानने से इनकार करते हुए कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव हमेशा पार्टियां स्वतंत्र रूप से लड़ती आई हैं। उन्होंने सवाल किया, “स्थानीय चुनावों में यदि पार्टी कार्यकर्ताओं को अवसर नहीं मिलेगा, तो वे क्या करेंगे?”
वहीं विपक्षी दलों ने शिवसेना (यूबीटी) के इस कदम पर तंज कसते हुए एमवीए को “डूबता हुआ जहाज” करार दिया है।
गठबंधन के भविष्य पर सवाल एमवीए में इस घटनाक्रम ने न केवल राजनीतिक गठबंधन की ताकत को कमजोर किया है, बल्कि इससे आगामी चुनावों में साझा रणनीति पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। अब देखना होगा कि यह निर्णय शिवसेना (यूबीटी) और एमवीए के अन्य घटकों के राजनीतिक भविष्य को कैसे प्रभावित करता है।