बिहार:- बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) परीक्षा को लेकर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। 13 दिसंबर को पटना के बापू परीक्षा केंद्र पर आयोजित परीक्षा के दौरान हंगामे के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई। इसके बाद से पेपर लीक की शिकायतें और परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर अभ्यर्थियों का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है।
बापू परीक्षा केंद्र पर हंगामा और पेपर लीक की शिकायत
बापू परीक्षा केंद्र पर आयोजित बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए अभ्यर्थियों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। छात्रों ने आरोप लगाया कि परीक्षा से पहले ही पेपर लीक हो गया था, जिससे परीक्षा की शुचिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। छात्रों ने मांग की कि इस परीक्षा को पूरी तरह रद्द किया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
छात्रों का आंदोलन और राजनीतिक समर्थन
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने छात्रों के आंदोलन का समर्थन करते हुए 3 जनवरी को बिहार बंद का आह्वान किया। सुबह 9 बजे पप्पू यादव सचिवालय हॉल्ट रेलवे स्टेशन पहुंचे और अपने समर्थकों के साथ ‘रेल रोको’ आंदोलन किया। उनके समर्थक रेलवे ट्रैक पर बैठ गए और बीपीएससी के खिलाफ नारेबाजी की।
पुलिस और प्रशासन का रुख
रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन के कारण ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित हुई, जिससे यात्रियों को परेशानी हुई। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए प्रदर्शनकारियों को ट्रैक से हटाया और स्थिति को नियंत्रण में लाया। प्रशासन का कहना है कि छात्रों के मुद्दों पर विचार किया जाएगा, लेकिन कानून-व्यवस्था में किसी तरह का व्यवधान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
परीक्षा में अनियमितता पर सवाल
बिहार में प्रतियोगी परीक्षाओं में अनियमितताओं का मुद्दा नया नहीं है। इससे पहले भी कई बार पेपर लीक और अन्य गड़बड़ियों की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। बीपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में इस तरह की घटनाएं न केवल छात्रों के भविष्य को खतरे में डालती हैं, बल्कि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती हैं।
आगे की राह
छात्रों की मांग है कि इस मामले की गहराई से जांच की जाए और पेपर लीक के दोषियों को सजा दी जाए। इसके साथ ही, बीपीएससी को अपनी परीक्षा प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
बिहार में बीपीएससी परीक्षा विवाद ने प्रशासन, छात्रों और राजनीतिक दलों के बीच तनाव बढ़ा दिया है। यह मुद्दा केवल परीक्षा की शुचिता का नहीं, बल्कि छात्रों के भविष्य और राज्य की छवि का भी है। सरकार और प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी और निष्पक्ष समाधान प्रदान करना होगा।
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