चटगांव की अदालत ने हिंदू संन्यासी चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है, जिससे यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। 40 दिनों से जेल में बंद चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और न्याय की प्रक्रिया को लेकर इस्कॉन कोलकाता ने नाराजगी व्यक्त करते हुए इसे “दुखद और अन्यायपूर्ण” करार दिया है।
अदालत का फैसला और प्रतिक्रिया चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर को ढाका के हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था। उन पर देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। गुरुवार को वर्चुअल सुनवाई के दौरान उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। इस फैसले ने उनके समर्थकों और इस्कॉन के अनुयायियों में गहरी निराशा पैदा की है।
इस्कॉन का पक्ष इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास ने अदालत में हुए घटनाक्रम की जानकारी देते हुए कहा कि इस बार वकीलों को चिन्मय दास का पक्ष रखने का मौका मिला, जो पहले की सुनवाई में नहीं दिया गया था। उन्होंने चिन्मय दास की खराब सेहत को लेकर चिंता जताई और कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि अदालत मानवीय आधार पर जमानत देगी।
अगले कदम: उच्च अदालत की ओर रुख अब चिन्मय कृष्ण दास के वकील बांग्लादेश की उच्च अदालत में अपील दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। इस्कॉन ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से आग्रह किया है कि उच्च अदालत में सुनवाई के दौरान वकीलों और अन्य कानूनी टीम को सुरक्षा प्रदान की जाए।
अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ती हिंसा बांग्लादेश में हाल के महीनों में अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से हिंदुओं, के खिलाफ हिंसक घटनाओं में वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद, हिंदू समुदाय के मंदिरों और संपत्तियों पर हमलों के मामले बढ़ गए हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि वैश्विक मानवाधिकार संगठनों का ध्यान भी आकर्षित कर रही है।
गिरफ्तारी के निहितार्थ चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उन पर लगाए गए देशद्रोह के आरोप कई सवाल खड़े करते हैं। क्या यह धार्मिक असहिष्णुता का परिणाम है, या इसके पीछे कोई राजनीतिक षड्यंत्र है? इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
न्याय की उम्मीद और अंतरराष्ट्रीय अपील इस्कॉन और उनके अनुयायी अब उच्च अदालत से न्याय की आस लगाए हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की जा रही है। चिन्मय कृष्ण दास के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं।
यह मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के हनन का प्रतीक बन गया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उच्च अदालत और अंतरराष्ट्रीय मंच इस मामले को किस तरह देखते हैं और क्या चिन्मय कृष्ण दास को न्याय मिल पाता है।
Discussion about this post