हिंदू महिलाओं का पति की संपत्ति पर अधिकार: सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी फैसला

सुप्रीम कोर्ट:- महिलाओं के पति की संपत्ति और पैतृक संपत्ति में अधिकार हमेशा ही एक विवादास्पद और संवेदनशील मुद्दा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण स्पष्टता दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत संपत्ति के अधिकारों की व्याख्याओं को स्पष्ट करने का निर्णय लिया, जो दशकों से लंबित एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या एक हिंदू पत्नी अपने पति द्वारा दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व अधिकार रखती है, भले ही वसीयत में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हों? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पी. एन. नरसिम्हा और संदीप मेहता की बेंच ने इस मुद्दे को एक बड़ी बेंच के पास भेजने का निर्णय लिया ताकि इस पर अंतिम समाधान सुनिश्चित हो सके। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मुद्दा न केवल कानूनी जटिलताओं का विषय है, बल्कि इसका असर देशभर में हिंदू महिलाओं, उनके परिवारों और कई कोर्ट में लंबित मामलों पर भी पड़ेगा।
क्या था पूरा मामला?
इस मामले की शुरुआत लगभग छह दशक पहले 1965 में कंवर भान नामक व्यक्ति की वसीयत से होती है, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी को एक जमीन के टुकड़े पर जीवनभर अधिकार दिया था, लेकिन यह शर्त के साथ कि पत्नी की मृत्यु के बाद संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों को लौटाई जाएगी। कुछ साल बाद, पत्नी ने उस जमीन को बेच दिया और दावा किया कि वह पूरी तरह से उस संपत्ति की मालिक है। इसके बाद उनके बेटे और पोते ने इस बिक्री को चुनौती दी और मामला अदालतों में चला गया, जिसमें हर स्तर पर विरोधाभासी फैसले आए।
निचली अदालत और अपीलीय अदालत ने 1977 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले तुलसम्मा बनाम शेष रेड्डी का हवाला देते हुए पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) के तहत हिंदू महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व के अधिकार दिए गए थे। हालांकि, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इससे असहमति जताई और 1972 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले कर्मी बनाम अमरु का हवाला दिया, जिसमें वसीयत में रखी गई शर्तों को संपत्ति अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने वाला बताया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता पर जोर दिया
अब यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जहां जस्टिस पी. एन. भागवती के तुलसम्मा फैसले में उठाए गए सवालों की पुनः याद दिलाई गई। जस्टिस भागवती ने धारा 14 के कानूनी मसौदे को वकीलों के लिए स्वर्ग और वादियों के लिए अंतहीन उलझन बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को स्पष्ट करने की आवश्यकता को बल दिया और कहा कि इस विषय पर कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है। अब एक बड़ी बेंच को यह फैसला लेना होगा कि क्या वसीयत में दी गई शर्तें हिंदू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को धारा 14(1) के तहत सीमित कर सकती हैं या नहीं।
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