गाजियाबाद:- साइबर अपराधियों की बढ़ती गतिविधियां चिंताजनक रूप ले रही हैं। पिछले नौ महीनों में यहां करीब 375 करोड़ रुपये की ठगी की गई है। विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए साइबर ठगों ने कई लोगों को निशाना बनाया है। यह धनराशि अलग-अलग राज्यों, जिलों और शहरों में स्थित बैंक खातों से ट्रांसफर की गई थी, और एटीएम से निकाली गई या अन्य खातों में स्थानांतरित की गई। जांच में पता चला है कि इन खातों से धनराशि विदेशी बैंकों में भेजी गई है, जिनमें कंबोडिया, दुबई और वियतनाम प्रमुख हैं।
गाजियाबाद में करीब 800 से अधिक लोग साइबर ठगों के शिकार हुए हैं। विभिन्न थानों में कुल पांच लाख रुपये तक की धोखाधड़ी के मामले दर्ज हैं। साइबर पुलिस स्टेशन में पांच लाख से अधिक रुपये की धोखाधड़ी के 345 मामले हैं। साइबर अपराधियों ने पीड़ितों से डिजिटल अरेस्ट, शेयर ट्रेडिंग, टेलीग्राम टास्क, पुलिस थ्रेड, सेक्सटॉर्सन और फोन हैकिंग जैसी चालें खेलकर करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी की है।
आईपी एड्रेस एक बड़ी चुनौती डीसीपी अपराध सच्चिदानंद का कहना है कि हर वेबसाइट, मोबाइल या लैपटॉप का अपना आईपी एड्रेस होता है। नोड नामक सॉफ्टवेयर मोबाइल डिवाइस की रोमिंग सुविधा को सक्षम करता है। यह जानकारी देश में है तो होम नेटवर्क से जुड़ा होता है और विदेश में है तो मोबाइल नोड विदेशी नेटवर्क से जोड़ता है। इस प्रक्रिया में स्थानीय मोबाइल कंपनियों की अनुमति आवश्यक होती है, जो अक्सर नहीं मिलती। साइबर ठग इसी तकनीक का फायदा उठाकर अपनी पहचान छिपाने में सफल होते हैं, जिससे अपराधियों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए साइबर पुलिस सक्रिय रूप से काम कर रही है और संदिग्ध खातों की गहनता से जांच कर रही है। IP एड्रेस को ट्रैक करना अपराधियों की पहचान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
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