हाल ही में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों और मंदिरों पर हमलों के खिलाफ भारत के विभिन्न हिस्सों में हिंदू संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया। यह विरोध स्वाभाविक और जरूरी है। जब किसी समुदाय पर अत्याचार होता है, तो उनकी आवाज उठाना हर समाज की नैतिक जिम्मेदारी है। दुर्भाग्य से, कुछ तथाकथित सेकुलर और स्वयंभू समझदार लेखकों ने इन प्रदर्शनों की आलोचना शुरू कर दी।
ये वही लेखक हैं जो अपनी लेखनी से यह जताने की कोशिश करते हैं कि भारत में इससे भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और बांग्लादेशी हिंदुओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाना व्यर्थ है। उनका यह दृष्टिकोण न केवल पक्षपाती है बल्कि उनकी मानसिकता की गहराई को भी उजागर करता है।
दोहरे मानदंड जब भारत में किसी मुस्लिम समुदाय पर कोई वास्तविक या काल्पनिक अन्याय होता है, तो ये लेखक तुरंत जागरूक हो जाते हैं। वे न्याय और समानता की बात करते हैं। लेकिन जब दुनिया के मुस्लिम देशों में हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, या अन्य अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार होता है, तो वे चुप्पी साध लेते हैं।
फिलिस्तीन के मुद्दे पर हिंसक प्रदर्शन भारत में रहने वाले कई मुसलमान, जो भारतीय संविधान और कानून के तहत सुरक्षा और अधिकारों का लाभ उठाते हैं, फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करते हैं। वे इजरायल का विरोध करते हैं, हमास जैसे संगठनों का समर्थन करते हैं। यह उनकी अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम एकजुटता (मुस्लिम ब्रदरहुड) को दर्शाता है। लेकिन जब बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान में हिंदुओं के अधिकारों की बात आती है, तो यही आवाजें खामोश हो जाती हैं।
भारत हिंदुओं का एकमात्र देश है भारतवर्ष हिंदुओं का एकमात्र ऐसा देश है जहां वे अपनी संस्कृति, परंपराओं और धर्म को स्वतंत्र रूप से जी सकते हैं। जब भारत के हिंदू अपने बांग्लादेशी भाइयों के लिए आवाज नहीं उठाएंगे, तो कौन उठाएगा? क्या यह उनके अस्तित्व और अधिकारों के प्रति अन्याय नहीं होगा?
सेकुलर पत्रकारों को सलाह जो लेखक इन प्रदर्शनों का मजाक उड़ाते हैं और उन्हें “गैर-जरूरी” ठहराते हैं, उन्हें यह समझने की आवश्यकता है:
समस्याओं की प्राथमिकता भारत की आंतरिक समस्याओं का समाधान होना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पड़ोसी देशों में हिंदुओं के अधिकारों की अनदेखी की जाए।
समान मानदंड अपनाएं: यदि आप मानवाधिकार और न्याय के पक्षधर हैं, तो हिंदुओं के अधिकारों के लिए भी उतने ही मुखर बनें जितना अन्य समुदायों के लिए।
हिंदुओं के धैर्य की परीक्षा न लें भारत के हिंदू अब जाग चुके हैं। वे अपनी उपेक्षा को सहन नहीं करेंगे। यदि आप अपनी लेखनी को पक्षपाती बनाएंगे, तो जनता इसका उचित उत्तर देगी।
भारत के हिंदुओं का अपने समुदाय के लिए आवाज उठाना न केवल उनका अधिकार है, बल्कि उनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। जो लेखक इस आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें अपनी सोच में सुधार करना चाहिए। हिंदू समाज अब जागरूक है और वह अपने धर्म, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा।
यह वक्त आत्मचिंतन का है। अपने लेखन में निष्पक्षता और सत्य को जगह दें, अन्यथा जनता आपका जवाब देने के लिए तैयार है।
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