RBI की MPC बैठक में बड़ा निर्णय: रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं, सीआरआर में कटौती से बैंकिंग क्षेत्र को मिलेगी राहत

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को चालू वित्त वर्ष की पांचवीं द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में ऐतिहासिक निर्णय लिया। केंद्रीय बैंक ने लगातार 11वीं बार नीतिगत दर रेपो (Repo) में कोई बदलाव नहीं किया, और इसे 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा। हालांकि, देश की अर्थव्यवस्था में नकदी की आपूर्ति बढ़ाने के उद्देश्य से सीआरआर (कैश रिजर्व रेश्यो) को 4.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया। इस कदम से बैंकों को अतिरिक्त नकदी मिल सकेगी, जिससे उनकी लिक्विडिटी बढ़ेगी। अनुमान है कि बैंकों के पास 1.16 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी आ जाएगी।
सीआरआर और उसका महत्व
सीआरआर वह अनुपात होता है, जो कमर्शियल बैंकों को अपनी जमा पूंजी का एक निश्चित हिस्सा केंद्रीय बैंक के पास नकद रूप में जमा करने के लिए अनिवार्य रूप से रखना होता है। सीआरआर में कमी का सीधा मतलब है कि बैंकों को अधिक नकदी उपलब्ध होगी, जिससे वे नवीन ऋण देने और अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने में सक्षम होंगे।
भारत की जीडीपी ग्रोथ और महंगाई पर असर
इस बैठक में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ के अनुमान में भी बदलाव किया। पहले जहां आरबीआई ने भारत की वृद्धि दर (GDP Growth) को 7.2 प्रतिशत पर अनुमानित किया था, अब इसे घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके अलावा, आरबीआई ने रिटेल इन्फ्लेशन के अनुमान को भी 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत करने की घोषणा की है।
रेपो रेट का क्या है असर?
रेपो रेट वह ब्याज दर है, जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी तात्कालिक नकदी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। रेपो रेट में बदलाव का सीधा असर बैंकों द्वारा लोन लेने और देने की लागत पर पड़ता है। जब केंद्रीय बैंक रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है, जिसका असर आम नागरिकों और कंपनियों पर पड़ता है। इसके विपरीत, जब रेपो रेट घटता है, तो कर्ज सस्ता हो जाता है, और आम आदमी के लिए मौद्रिक नीति में राहत मिलती है।
एमपीसी का तटस्थ रुख
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने इस बैठक के परिणामों का खुलासा करते हुए कहा कि मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया। समिति के छह में से चार सदस्य रेपो रेट को स्थिर रखने के पक्ष में थे, जबकि दो सदस्यों ने इसमें बदलाव की वकालत की थी। इस निर्णय के बाद, एमपीसी ने अपने रुख को तटस्थ बनाए रखने का निर्णय लिया। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति में भविष्य में कोई अचानक बदलाव करने से बचने का प्रयास करेगा, ताकि अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक दबाव न पड़े।
राहत या चिंता?
रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होने से आमतौर पर कर्ज की EMI में स्थिरता बनी रहती है। इससे मकान, वाहन और व्यक्तिगत लोन लेने वालों को राहत मिलती है, क्योंकि मासिक किस्तों में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता। हालांकि, महंगाई के ऊपर दबाव बना रहने के कारण, लंबी अवधि में यह रुख अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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