इंदिरापुरम:- कौशांबी इलाके में एक कारोबारी के खिलाफ दर्ज किए गए दुष्कर्म के झूठे मामले में पुलिस की लापरवाही सामने आई है, जिसके कारण उसे 95 दिन तक जेल में रहना पड़ा। मामले का खुलासा उच्च न्यायालय द्वारा जमानत मिलने के बाद हुआ, जब कारोबारी ने पुलिस कमिश्नर से शिकायत की। इसके बाद विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया गया और जांच में यह साबित हुआ कि दुष्कर्म का आरोप बेबुनियाद था।
कारोबारी का कहना है कि एफआईआर में जिस समय का घटनाक्रम बताया गया, उस दौरान वह थाईलैंड में थे और इसके सबूत भी उन्होंने पुलिस को दिए थे। बावजूद इसके पुलिस ने उनकी बेगुनाही की अनदेखी की और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अगर एसआईटी की जांच नहीं होती, तो शायद सच्चाई कभी सामने नहीं आती।
इस मामले में पुलिस की जांच में गंभीर लापरवाही के आरोप लगते हैं। विशेष तौर पर पांच पुलिसकर्मियों—तीन इंस्पेक्टर और दो दरोगा—के खिलाफ जांच की गई, जिन्होंने इस मामले में जल्दबाजी से गिरफ्तारी की और जांच में कोई गंभीरता नहीं दिखाई। विभागीय जांच में इनकी लापरवाही साबित हुई, और इनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई।
हनीट्रैप गैंग का खुलासा
यह मामला सिर्फ पुलिस की लापरवाही तक सीमित नहीं था, बल्कि एक हनीट्रैप गैंग द्वारा झूठा मुकदमा दर्ज करने का भी था। कारोबारी ने बताया कि दिल्ली की 27 वर्षीय युवती, जिसने उनके खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाया, एक हनीट्रैप गैंग चलाती है। युवती ने पांच करोड़ रुपये की मांग की थी और कहा था कि वह रकम मिलने पर केस वापस ले लेगी।
एसआईटी जांच के बाद युवती पर दो केस दर्ज किए गए: एक, कारोबारी की फर्म से डाटा चोरी करने का और दूसरा, झूठा दुष्कर्म केस दर्ज कर पैसों की मांग करने का। अब युवती और उसके परिजनों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।
रिश्वत के आरोप और जांच
कारोबारी ने यह भी आरोप लगाया कि दुष्कर्म मामले में पुलिसकर्मियों ने उनकी पत्नी से 32 लाख रुपये की रिश्वत ली थी। हालांकि, इस आरोप में पुलिस ने अभी तक कोई ठोस साक्ष्य नहीं पाया है, लेकिन मामला अभी भी जांच के दायरे में है। डीसीपी निमिष पाटिल के अनुसार, मामले में विवेचना में लापरवाही तो मिली है, लेकिन रिश्वत के मामले में जांच जारी है।
यह मामला पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है और यह दिखाता है कि कैसे एक झूठे आरोप के चलते एक बेगुनाह शख्स को सालों तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।
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