सुप्रीम कोर्ट:- सोमवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया, जिसमें उसने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने के आदेश पर रोक लगा दी। यह आदेश उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों द्वारा जारी किया गया था और इसका आधार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट था, जिसमें मदरसों की मान्यता रद्द करने और उनके शिक्षण मानकों की जांच का प्रस्ताव था।
मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। अदालत ने संगठन के वकील की बातों को ध्यान में रखते हुए एनसीपीसीआर के संचार और कुछ राज्यों की कार्रवाइयों पर रोक लगाने की आवश्यकता महसूस की। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि जब तक मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का पालन नहीं करते, तब तक उन पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। न्यायालय ने कहा कि एनसीपीसीआर द्वारा 27 जून तक जारी किए गए संचार पर रोक लगाई जाती है और इसके तहत उठाए गए सभी कदम भी प्रभावी रूप से रद्द कर दिए गए हैं।
इस फैसले के बाद विपक्षी पार्टियों ने बीजेपी सरकार पर जमकर हमला बोला है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा अल्पसंख्यक संस्थानों को चुनिंदा तरीके से निशाना बना रही है। एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी मदरसों को बंद करने की मांग नहीं की, बल्कि कहा कि सरकारी फंडिंग बंद की जानी चाहिए, क्योंकि ये संस्थान गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल शिक्षा के अधिकार के महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि किसी भी निर्णय को लागू करने से पहले सभी पक्षों की सुनवाई आवश्यक है। यह फैसला मदरसों के छात्रों के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जो उनके अधिकारों की रक्षा करता है।
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