असम अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के संबंध में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गुरुवार को सुनाया जाएगा। यह मामला देश के नागरिकता कानूनों और मानवाधिकारों पर गहरी छाप छोड़ने वाला हो सकता है। प्रधान न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा इस मुद्दे का निर्णय किया जाएगा, जो पिछले साल दिसंबर से सुरक्षित रखा गया है।
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए विशेष रूप से असम समझौते के तहत 1971 से पहले असम में रहने वाले अवैध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है। इस धारा को लागू करने का उद्देश्य असम में रह रहे लोगों की नागरिकता का मुद्दा सुलझाना था, लेकिन इसके लागू होने के बाद से यह कई विवादों का कारण बन चुका है।
सुप्रीम कोर्ट में कुल 17 याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें तर्क दिया गया है कि धारा 6ए असम के मूल नागरिकों के लिए भेदभावपूर्ण है। असम संमिलिता महासंघ और अखिल असम अहोम सभा जैसे संगठनों ने यह दावा किया है कि अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने से असम की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। उनका यह भी कहना है कि अवैध प्रवास की समस्या केवल असम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश से सटे अन्य राज्यों में भी व्याप्त है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से दलीलें पेश कीं। उन्होंने अदालत को बताया कि अवैध प्रवासियों की पहचान करना और उन्हें हिरासत में लेना एक जटिल प्रक्रिया है। केंद्र ने यह भी कहा कि पड़ोसी देशों के असहयोग के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
केंद्र सरकार ने हलफनामे में बताया कि भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों का सटीक डेटा जुटाना संभव नहीं है। यह भी बताया गया कि 1966 से 1971 तक असम में 32,381 विदेशियों की पहचान की गई थी। केंद्र ने यह तर्क दिया कि देश की सीमित संसाधनों और बड़ी जनसंख्या को देखते हुए, भारतीय नागरिकों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
नागरिकता का अधिकार और सामाजिक न्याय
यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने से असम की मूल पहचान प्रभावित होगी। उनका यह भी कहना है कि यह धारा असम के नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
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