पूनम चतुर्वेदी की कहानी केवल बास्केटबॉल के मैदान पर उनकी ऊँचाई की नहीं, बल्कि उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और संघर्ष की है। सात फीट लंबी, पूनम ने न केवल अपने अद्वितीय कद को अपनाया, बल्कि जानलेवा ब्रेन ट्यूमर और बदमाशी के खिलाफ भी बहादुरी से लड़ा।
उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मी पूनम का जीवन हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा। जब वह हाई स्कूल में थी, उसकी लंबाई ने उसे क्रूर बदमाशी का शिकार बना दिया। तानों और आक्षेपों ने उसके आत्म-आदर को चोट पहुँचाई, लेकिन बास्केटबॉल ने उसे नई दिशा दी। एक पारिवारिक मित्र की सलाह ने उसे खेल के प्रति प्रेरित किया, और उसने इसे अपनी शरणस्थली बना लिया।
पूनम ने बास्केटबॉल में अपनी प्रतिभा को पहचानते हुए राज्य टीम में जगह बनाई। लेकिन 2013 में, उसके जीवन में एक बड़ा मोड़ आया जब उसे ब्रेन ट्यूमर का पता चला। दो बड़ी सर्जरी और पांच साल की अनिश्चितता के बावजूद, उसका हौसला कम नहीं हुआ। बास्केटबॉल के प्रति उसका प्यार और जीतने की इच्छा ने उसे पुनर्वास की कठिनाइयों को पार करने में मदद की।
2019 में, जब उसे ट्यूमर-मुक्त घोषित किया गया, तो पूनम ने अपनी खेल यात्रा में वापसी की। आज, वह न केवल भारत की सबसे लंबी महिला बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं, बल्कि एक प्रेरणा भी हैं जो हर किसी को यह सिखाती हैं कि संघर्ष और धैर्य से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।
पूनम चतुर्वेदी की कहानी हमें बताती है कि ऊंचाई केवल शारीरिक नहीं होती; असली ऊँचाई उन लड़ाइयों में है जो हम अपने जीवन में लड़ते हैं।
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