पिंकी हरियाण का जीवन संघर्ष और प्रेरणा की अनोखी मिसाल है। मैक्लोडगंज की सड़कों पर भीख मांगने और कूड़े के ढेर में खाना ढूंढने वाली पिंकी ने आज अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से एक सफल डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया है।
2004 में, एक तिब्बती शरणार्थी भिक्षु लोबसांग जामयांग ने पिंकी को भीख मांगते हुए देखा और उसे शिक्षा दिलाने का संकल्प लिया। उन्होंने उसके माता-पिता, विशेषकर उसके पिता कश्मीरी लाल, को उसे स्कूल भेजने के लिए मनाने में कठिनाई का सामना किया। अंततः, पिंकी को धर्मशाला के दयानंद पब्लिक स्कूल में दाखिला मिला और वह एक छात्रावास का हिस्सा बनी।
पिंकी ने कठिनाईयों के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी, यह जानते हुए कि यह गरीबी से निकलने का एकमात्र रास्ता है। उसने अपनी वरिष्ठ माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की और नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) पास किया। लेकिन भारतीय मेडिकल कॉलेजों की उच्च फीस एक बाधा थी। फिर, यूके के टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट की मदद से, उसने 2018 में चीन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया।
हाल ही में, पिंकी ने एमबीबीएस की डिग्री पूरी की और अब वह भारत में चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) की तैयारी कर रही है। पिंकी का कहना है, “गरीबी मेरा सबसे बड़ा संघर्ष था, लेकिन अब मैं वंचितों की सेवा करने के लिए उत्सुक हूं।”
उसकी सफलता से प्रेरित होकर, उसके भाई-बहन भी स्कूल में दाखिला ले चुके हैं। पिंकी अपनी सफलता का श्रेय लोबसांग जामयांग को देती है, जिन्होंने उस पर विश्वास किया और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
जामयांग ने कहा, “हमारा लक्ष्य गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान करना था। हमें नहीं पता था कि ये बच्चे कितने प्रतिभाशाली हैं।” उनके प्रयासों के फलस्वरूप, पिंकी जैसे कई बच्चे अब डॉक्टर, इंजीनियर और पत्रकार बन चुके हैं।
पिंकी हरियाण की कहानी एक प्रेरणा है, जो बताती है कि मेहनत और लगन से किसी भी परिस्थिति को बदला जा सकता है।
Discussion about this post