आंध्र प्रदेश:- तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद को लेकर नया विवाद सामने आया है, जिसने राज्य की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। हाल ही में गुजरात के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) द्वारा की गई जांच में यह खुलासा हुआ कि मंदिर के प्रसाद में इस्तेमाल किए जाने वाले घी में जानवरों की चर्बी और मछली का तेल शामिल है। इस रिपोर्ट ने न केवल भक्तों को चौंकाया, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी तूफान ला दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने इस मुद्दे पर नायडू पर सीधा हमला करते हुए कहा कि यह सब उनके 100 दिनों के शासन से ध्यान भटकाने के लिए किया गया है। जगन ने नायडू की राजनीतिक रणनीति को आलोचना करते हुए कहा कि, “एक ऐसा व्यक्ति जो भगवान के नाम पर सियासत कर सकता है, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।”
धार्मिक भावनाओं पर चोट
यह विवाद केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने धार्मिक भावनाओं को भी आहत किया है। लाखों भक्तों की श्रद्धा के प्रतीक तिरुपति प्रसाद के बारे में ऐसे गंभीर आरोप सुनकर भक्तों में आक्रोश फैल गया है। जगन ने नायडू से यह सवाल उठाया, “क्या करोड़ों भक्तों की भावनाओं के साथ खेलना उचित है?”
नायडू का बचाव
नायडू ने अमरावती में एनडीए विधायक दल की बैठक में आरोप लगाया कि तिरुमाला लड्डू घटिया सामग्री से बनाया जा रहा था। उन्होंने कहा कि पूर्व सरकार के समय घी के बजाय जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, उन्होंने यह भी दावा किया कि अब शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जा रहा है और सभी सामग्री को सैनेटाइज किया गया है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की नई लहर
जगन मोहन रेड्डी की बहन और आंध्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष वाईएस शर्मिला ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर सीबीआई जांच की मांग की है। उनका कहना है कि इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए एक स्वतंत्र जांच जरूरी है।
संभावित परिणाम
यह विवाद न केवल धार्मिक भावनाओं को भड़काने का काम कर रहा है, बल्कि आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी एक नई दिशा की ओर इशारा कर रहा है। दोनों नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप ने इस मुद्दे को देशभर में सुर्खियों में ला दिया है, और आगामी चुनावों में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह विवाद न केवल वर्तमान सरकार की छवि को प्रभावित करेगा, बल्कि भविष्य में चुनावी नतीजों पर भी असर डाल सकता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों पक्ष इस मुद्दे को कैसे संभालते हैं और आगे की रणनीतियों में क्या बदलाव करते हैं।
तिरुपति प्रसाद का यह विवाद अब सिर्फ धार्मिक मामला नहीं रह गया है; यह आंध्र प्रदेश की राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया है।
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