शिक्षा से संघर्ष तक: सीताराम येचुरी का तमिलनाडु से वामपंथ के शिखर तक का सफर

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी का जीवन शिक्षा, संघर्ष और विचारधारा से भरा रहा। 12 अगस्त 1952 को चेन्नई के एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में जन्मे येचुरी का पालन-पोषण हैदराबाद में हुआ। हैदराबाद के ऑल सेंट हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने दिल्ली के प्रेसिडेंट स्कूल में दाखिला लिया और 12वीं कक्षा में ऑल इंडिया टॉपर बने। सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से परास्नातक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन 1975 में आपातकाल के दौरान जेल जाने के कारण पीएचडी अधूरी रह गई।
1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से जुड़ने के बाद, 1975 में सीताराम येचुरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल हुए। आपातकाल के दौरान उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ी और उन्हें तीन बार जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना गया। एसएफआई के पहले गैर-केरल और गैर-बंगाल अध्यक्ष बनने वाले येचुरी ने 1984 में सीपीआई-एम की केंद्रीय समिति और 1992 में पोलित ब्यूरो में जगह बनाई।
येचुरी ने 2005 में पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में कदम रखा और 2015 में सीपीआई-एम के महासचिव बने। 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने संयुक्त मोर्चा सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन कम्युनिस्ट विचारधारा और लोकतंत्र की बहाली के प्रति दृढ़ संकल्प का प्रतीक रहा।
व्यक्तिगत जीवन में सीताराम येचुरी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनकी पहली पत्नी इंद्राणी मजूमदार से दो बच्चे, अखिला और आशीष हुए। 2021 में कोरोना महामारी के दौरान आशीष का निधन उनके जीवन में एक गहरा सदमा था। येचुरी की दूसरी पत्नी, पत्रकार सीमा चिश्ती, ने उनके जीवन और परिवार को स्थिरता दी। एक साक्षात्कार में येचुरी ने बताया था कि उनकी आर्थिक जिम्मेदारी उनकी पत्नी सीमा ही संभाल रही हैं।
सीताराम येचुरी का जीवन संघर्ष और साहस की मिसाल है, जिसमें विचारधारा, राजनीतिक कर्तव्य और निजी त्रासदी का अद्वितीय संगम है। उनके निधन से भारतीय राजनीति को एक महत्वपूर्ण धरोहर मिली है, जो हमेशा याद की जाएगी।
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