प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 2022-23 में उत्तर प्रदेश विधान सभा और परिषद के सचिवालयों में कर्मचारियों की नियुक्तियों में कथित अनियमितताओं की केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जांच का आदेश दिया है। विधानसभा और विधान परिषद सचिवालयों में बड़े पैमाने पर नियुक्तियों को लेकर अनियमितता के आरोप लगे हैं।
जस्टिस ए आर मसूदी और जस्टिस ओमप्रकाश शुक्ला की डबल बेंच ने सुशील कुमार व दो अन्य की विशेष अपील के साथ ही विपिन सिंह की याचिका की सुनवाई की। भर्तियों की इस बड़ी घपलेबाजी का स्वत संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका यानी पीआईएल के रूप में दर्ज करने के साथ ही सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने शुरुआती जांच की रिपोर्ट 6 हफ्ते में पेश करने के लिए कहा। अदालत ने ये टिप्पणी भी की है कि सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए प्रतियोगिता मूल नियम है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भर्ती एजेंसियों की विश्वसनीयता बहुत ही जरूरी है। साथ ही पेश किए गए मूल रिकार्ड को सील कवर में रखने के आदेश दिए गए।
आपको बता दें कि वर्ष 2022 से 2023 के बीच विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में बड़े पैमाने पर स्टाफ की भर्ती हुई। इसमें व्यापक धांधली का मुद्दा हाईकोर्ट के एकल पीठ के सामने उठाया गया था। इसमें आरोप है कि चयन प्रक्रिया में कई नियकों को दरकिनार कर बाहरी भर्ती एजेंसियों को तरजीह दी गई। इसके लिए नियमों में मनमाना संशोधन किया गया। हाईकोर्ट ने गत 12 अप्रैल को याचिका खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ विशेष अपील दो न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष दाखिल की गई। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया है।
2017 में भी धांधली की जांच हुई थी
यह पहली बार नहीं हुआ है जब हाईकोर्ट ने यूपी विधानसभा में हुई भर्तियों की जांच का आदेश दिया हो। इससे पहले 2017 में सचिवालय में समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी भर्ती में हुई धांधली की जांच का आदेश भी दिया गया था। शिकायत आई थी कि सचिवालय में 47 समीक्षा अधिकारी और 60 सहायक समीक्षा अधिकारियों की भर्ती का विज्ञापन निकाला गया था। 2016 में परिणाम जारी होने के बाद पता चला कि कई अयोग्य अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया। इनमें कई लोग पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के नजदीकी रिेश्तेदार हैं। ऐसे लोगों की भी नियुक्ति दे दी गई जिनका नाम अंतिम चयन सूची में शामिल नहीं था।
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