नई दिल्ली। आर्टिकल 370 मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए लेक्चरर जफूर अहमद भट्ट के निलंबन का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में सरकार से सवाल पूछा है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने लेक्चरर के निलंबन पर सवाल उठाए हैं। जफूर अहमद भट्ट बीते सप्ताह सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश हुए थे।
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल अपने ऑफिस का इस्तेमाल करके इस मामले को देखें, जो कोई भी अदालत में पेश होता है, उसे निलंबित कर दिया जाता है।खंडपीठ ने आगे कहा कि इस बारे में उपराज्यपाल से भी बात की जाए। अगर कोई अन्य कारण है, तो ठीक है, लेकिन अगर सिर्फ अदालत में याचिका डालने या पेश होने की वजह से निलंबन हुआ है, तो ये गलत है। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि इस निलंबन में अन्य कारण भी हैं। अखबार में इस मामले में जो छपा है, वो पूरा सच नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से इस मामले को देखा जाएगा।
इसपर सिब्बल ने कहा, ‘तो फिर उसे पहले ही सस्पेंड किया जाना था, पर अब क्यों? यह ठीक नहीं है। यह लोकतंत्र के काम करने का तरीका नहीं होना चाहिए।’ सिब्बल ने कहा, ’24 को वह पेश हुआ और अगले ही दिन निलंबित कर दिया गया…।’ उन्होंने एसजी मेहता के दखल देते ही 25 अगस्त को जारी निलंबन आदेश पेश कर दिया।
जफूर अहमद भट्ट ने किया दिया था तर्क?
लेक्चरर जफूर अहमद भट्ट ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के तरीके पर सवाल उठाए। भट्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वो छात्रों को भारतीय संविधान और लोकतंत्र के बारे में बताने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया, ‘जब हम जम्मू-कश्मीर के छात्रों को संविधान के सिद्धांत पढ़ाने के लिए जाते हैं तो यह मेरे जैसे अध्यापक के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। छात्र कई बार बहुत मुश्किल सवाल पूछते हैं। जैसे- 5 अगस्त, 2029 को जो हुआ उसके बाद भी लोकतंत्र है? भट्ट ने कहा- इस तरह के सवालों के जवाब देना मेरे लिए काफी मुश्किल होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी को निर्देश दिया कि वह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बात करें और पता लगाएं कि केंद्र शासित प्रदेश के शिक्षा विभाग के एक लेक्चरर को अनुच्छेद 370 को खत्म करने के खिलाफ बहस करने के लिए अदालत में पेश होने के कुछ दिनों बाद निलंबित क्यों किया गया। जानना चाहता था कि क्या निलंबन व्याख्याता की अदालत के समक्ष उपस्थिति से जुड़ा था और संकेत दिया कि यदि ऐसा होता तो इसे कम देखा जाएगा, यह सुझाव देते हुए कि इसे “प्रतिशोध” के रूप में देखा जा सकता है।