‘बिलकिस के दोषियों को उम्रकैद की सजा थी, फिर 14 साल में कैसे रिहा हुए?, सुप्रीम कोर्ट का गुजरात सरकार से सवाल

नई दिल्ली। बिलकिस बानो गैंगरेप केस के दोषियों की रिहाई के मामले में गुरुवार (17 अगस्त) को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कई कड़े सवाल किए। जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने पूछा कि दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था, ऐसी स्थिति में उन्हें 14 साल की सजा के बाद कैसे रिहा किया जा सकता है। मामले में सुनवाई 24 अगस्त को फिर शुरू होगी।

अदालत 2002 के गुजरात दंगों के दौरान तीन सामूहिक बलात्कार और 14 हत्याओं के जघन्य अपराधों के आरोप के बावजूद पिछले अगस्त में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं (पीआईएल) के साथ पीड़िता बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से कहा, ‘कठोर अपराधियों को 14 साल के बाद रिहा कर उन्हें सुधरने का मौका देने वाला यह नियम कहां तक ​​अन्य कैदियों पर लागू किया जा रहा है? इस नीति को कुछ चुनिंदा कैदियों पर ही क्यों लागू किया जा रहा है? सुधार और पुन: एकीकृत होने का अवसर सभी को दिया जाना चाहिए। हमारी जेलें क्यों भर रही हैं? हमें डेटा दें।’

अदालत ने यह भी सवाल किया कि बिलकिस बानो के दोषियों के लिए जेल एडवाइजरी कमेटी का गठन किस आधार पर किया गया? जिससे राज्य को विवरण प्रदान करने का आदेश दिया गया। इसमें यह भी पूछा गया कि जब मुकदमा गोधरा की अदालत में नहीं चलाया गया तो उसकी राय क्यों मांगी गई?

क्या है मामला?
मालूम हो कि मामला 2002 का है। गोधरा ट्रेन अग्निकांड की घटना के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़के। इस दौरान डर से भागते समय बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ। उस वक्त बिलकिस बानो 21 साल की और पांच महीने की गर्भवती थीं। दंगों में उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई। मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया गया। लेकिन, पिछले साल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने सभी दोषियों को जेल से रिहा कर दिया। इसके बाद बिलकिस बानो ने इंसाफ की गुहार करते हुए 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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