नई दिल्ली। मोदी सरकार ने 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था। इस फैसले की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में लगातार सुनवाई हो रही है। इस दौरान मंगलवार को कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की, जिसमें उसने साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर में ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल नहीं उठता है।
जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने यह बात तब कही जब कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने ब्रेक्जिट (Brexit) जनमत संग्रह का हवाला दिया, जिसके बाद यूनाइटेड किंगडम ने यूरोपीय संघ से हटने का फैसला किया।
सिब्बल ने अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए इसका हवाला दिया कि अनुच्छेद 370 में संशोधन की प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर के लोगों की सहमति के बिना केंद्र द्वारा “एकतरफा” नहीं की जा सकती थी। सिब्बल ने पीठ से कहा, “आपका आधिपत्य ब्रेक्जिट को याद रखेगा। क्या हुआ? जनमत संग्रह की मांग करने वाला कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं था। लेकिन जब आप किसी रिश्ते को तोड़ना चाहते हैं, जो बन चुका है, तो आपको अंततः लोगों की राय लेनी चाहिए। क्योंकि इस फैसले के केंद्र में जनता है, भारत संघ नहीं। यह अनुच्छेद 370 की मूल भावना के विपरीत है।”
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल नहीं है। कोर्ट बस इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि केंद्र का कदम संवैधानिक रूप से सही है या नहीं। कोर्ट ने आगे कहा कि भारत एक संवैधानिक देश है, यहां पर लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थाओं के जरिए किया जाना चाहिए। हालांकि खंडपीठ ने ये माना कि ब्रेक्जिट एक राजनीतिक फैसला था।
क्या है ब्रेक्जिट?
दरअसल युनाइटेड किंगडम पहले यूरोपीय संघ का हिस्सा था, लेकिन उसके बीच में अनबन हो गई। ऐसे में उसने संघ को छोड़ने का फैसला लिया। यूके के बाहर निकलने की ये प्रक्रिया ब्रेक्जिट नाम से जानी जाने लगी। वहीं इस फैसले से पहले यूके ने जनमत संग्रह करवाया था, जिसमें जनता की राय वोटिंग के जरिए ली गई थी।
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