नई दिल्ली। कांग्रेस की अगुवाई में आज विपक्षी दलों का गठबंधन मणिपुर हिंसा पर केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहा है। विपक्षी नेताओं का मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव सरकार को मणिपुर पर लंबी चर्चा के लिए मजबूर करेगा और इस दौरान प्रधानमंत्री को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
कांग्रेस ने भी लोकसभा में अपने सदस्यों को कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए बुधवार सुबह 10:30 बजे तक अपने संसदीय कार्यालय में उपस्थित होने के लिए व्हिप जारी किया है। विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा, भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन-इंडिया के सांसदों की मंगलवार सुबह हुई बैठक में अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया गया। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हम सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं क्योंकि सरकार के ऊपर लोगों का भरोसा टूट रहा है। हम चाहते थे कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर पर बोलें, लेकिन पीएम बात नहीं सुनते। वे सदन के बाहर कुछ बात करते हैं और यहां इनकार करते हैं। हमने बार-बार उनका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की लेकिन सब विफल रहा, इसलिए हमें अविश्वास प्रस्ताव लाना सही लगता है।
किसी भी नियम के तहत करा लें चर्चा…
वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे व लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीररंजन चौधरी को पत्र लिखकर कहा कि मणिपुर पर सरकार किसी भी नियम के तहत चर्चा को तैयार है। लोकसभा में सहकारी सोसायटी विधेयक पर चर्चा के दौरान शाह ने कहा, सरकार किसी भी नियम के तहत कितनी भी लंबी चर्चा के लिए तैयार है। विपक्ष अगर वाकई इस मुद्दे पर गंभीर है, तो उसे सरकार का प्रस्ताव मानना चाहिए और मणिपुर हिंसा पर चर्चा करनी चाहिए। विपक्ष को चर्चा से मुंह छिपाने के बदले सरकार की चुनौती स्वीकार करनी चाहिए।
50 सांसदों की जरूरत
सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को नियम 198 के तहत लोकसभा में पेश किया जा सकता है। इस अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के लिए ही करीब 50 विपक्षी सांसदों का समर्थन होना जरूरी है। लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव एक अहम कदम माना जाता है। अगर संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए और सदन के 51% सांसद अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करते हैं, तो यह पारित हो जाता है और माना जाता है कि सरकार ने बहुमत खो दिया है और उसे पद से इस्तीफा देना होगा। सरकार को या तो विश्वास मत लाकर सदन में अपना बहुमत साबित करना होता है या विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद सरकार से बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है।
हालांकि यह जरूरी नहीं है कि विपक्षी दल सिर्फ सरकार गिराने के उद्देश्य से ही अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हैं, कई बार विपक्ष सरकार को राष्ट्रीय महत्व के किसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मजबूर करने के लिए भी अविश्वास प्रस्ताव लाता है। पिछली बार जुलाई 2018 में विपक्ष की ओर से मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था और यह गिर गया। अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में 126 वोट जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट किया था।
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