रायपुर। छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक के आवंटन घोटाला मामले में बड़ा फैसला आया है। दिल्ली की राउज एवेन्यु कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट ने गुरुवार को सभी छह आरोपियों को दोषी घोषित किया है, जिनमें पूर्व राज्य सभा सांसद विजय दर्डा और उनका बेटा देवेंद्र दर्डा भी शामिल हैं। इस मामले पर 18 जुलाई को सज़ा पर बहस की जाएगी।
स्पेशल कोर्ट ने कोल ब्लॉक घोटाले में जिन छह लोगों को दोषी माना है, उनमें पूर्व राज्य सभा सांसद विजय दर्डा, उनके बेटे देवेंद्र दर्डा, पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, दो वरिष्ठ नौकरशाह केएस क्रोफा व केसी समारिया और मैसर्स जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी व उसके निदेशक मनोज कुमार जायसवाल शामिल हैं। इन सभी के खिलाफ स्पेशल कोर्ट ने 10 नवंबर, 2016 को सीबीआई जांच के आधार पर IPC की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और 420 (धोखाधड़ी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप तय किए थे। इसके बाद से मामले में सुनवाई चल रही थी।
यह है कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला
जेएलडी यवतमाल कंपनी को छत्तीसगढ़ में फतेहपुर ईस्ट कोल ब्लॉक आवंटित किया गया था। यह आवंटन तत्कालीन राज्यसभा सांसद विजय दर्डा के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे सिफारिशी पत्र के आधार पर किया गया था। मनमोहन सिंह ही कोयला मंत्रालय के प्रभारी थे। इस मामले में आवंटन के दौरान अनियमितताएं बरतने का आरोप विपक्षी दलों ने लगाया था, जिसके बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। सीबीआई ने FIR में दर्ज किया था कि पूर्व सांसद विजय दर्डा ने अपने पत्र में तथ्यों को छिपाया था। यह काम जेएलडी यवतमाल समूह को फतेहपुर ईस्ट कोल ब्लॉक आवंटित कराने के लिए किया। सीबीआई के मुताबिक, यवतमाल समूह की कंपनियों को 1995-2005 के बीच चार कोल ब्लॉक आवंटन की बात छिपाई गई थी। इससे कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता हुई थी।
क्लोजर रिपोर्ट में घोटाले की बात खारिज की थी सीबीआई ने
अपनी एफआईआर में घोटाले की बात कहने वाली सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट में अनियमितता होने की बात खारिज कर दी थी हालांकि इस क्लोजर रिपोर्ट को 20 नवंबर, 2014 को कोर्ट ने खारिज कर दिया था और आगे जांच के निर्देश दिए थे। इसके बाद स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 20 अगस्त, 2015 को सभी आरोपियों को जमानत दे दी थी। बाद में सीबीआई के चार्जशीट दाखिल करने पर कोर्ट ने सभी को बतौर आरोपी पेश होने का निर्देश दिया था। साल 2016 में आरोप तय करते हुए कोर्ट ने कहा था कि पहली नजर में यह निजी लोगों की सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर की गई धोखाधड़ी दिख रही है।
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