श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के दो डॉक्टरों ने सेना के जवानों के खिलाफ दुष्कर्म की झूठी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कर दी। इस रिपोर्ट के आधार पर इन जवानों को कानूनी लड़ाई तक लड़नी पड़ी।साल 2009 की इस घटना के 15 साल बाद दोनों आरोपी डॉक्टरों को सर्विस से बर्खास्त कर दिया गया है।
2009 के ‘शोपियां बलात्कार’ मामले में झूठे सबूत गढ़ने पर डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निघत शाहीन चिल्लू को उनके पद से हटा दिया गया। शोपियां में 30 मई 2009 को दो महिलाओं -आसिया और नीलोफर के शव एक जलधारा में मिले थे। उसके बाद आरोप लगाया गया था कि सुरक्षा कर्मियों ने उनके साथ रेप किया और फिर उनकी हत्या कर दी। अधिकारियों ने कहा कि दो डॉक्टरों- डॉ बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निघत शाहीन चिल्लू को पाकिस्तान के साथ मिल कर काम करने और शोपियां की आसिया और नीलोफर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत साबित करने के लिए साजिश रचने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि दोनों महिलाओं की 29 मई 2009 को डूबने से मौत हो गई थी।
दोनों का उद्देश्य भारतीय सुरक्षा बलों पर रेप और हत्या का झूठा आरोप लगाकर भारतीय राज्य के खिलाफ असंतोष पैदा करना था। जांच से पता चलता है कि तत्कालीन सरकार के शीर्ष अधिकारियों को तथ्यों के बारे में पता था, जिसे आसानी से दबा दिया गया और घटना के विरोध में 42 दिन तक कश्मीर बंद रहा था।
6000 करोड़ के व्यापार का नुकसान
इस साजिश के बाद कश्मीर घाटी लगभग 7 महीने तक सुलगती रही। जून-दिसंबर 2009 के सात महीनों में हुर्रियत जैसे समूहों द्वारा 42 बार हड़ताल का आह्वान किया गया था। इसके परिणामस्वरूप घाटी मे बड़े लेवल पर दंगे देखने को मिले थे। इस दौरान छोटी-बड़ी करीब 600 से अधिक कानून व्यवस्था के मामले देखने को मिले थे। दंगा, पथराव, आगजनी के विभिन्न थानों में कुल 251 एफआईआर दर्ज किए गए थे। वहीं इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान 7 नागरिकों की जान चली गई थी जबकि 103 लोग घायल हुए थे। इसके अतिरिक्त 29 पुलिसकर्मियों समेत 6 अर्धसैनिक बलों के जवानों को चोटें आईं। अनुमान के मुताबिक उन 7 महीनों में करीब 6000 करोड़ रुपये के कारोबार का नुकसान हुआ था।
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