नई दिल्ली। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जमकर तारीफ की है। डोभाल ने कहा है कि अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिंदा होते तो भारत का बंटवारा नहीं हुआ होता। उन्होंने नेताजी को याद करते हुए कहा कि देश की आजादी से कम किसी चीज के लिए बोस ने कभी समझौता नहीं किया।
अजीत डोभाल ने शनिवार को एसोचैम द्वारा आयोजित पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्मृति व्याख्यान में कहा कि नेताजी ने अपने जीवन के विभिन्न चरणों में दुस्साहस दिखाया और गांधी को चुनौती देने का दुस्साहस किया। उन्होंने कहा, लेकिन गांधी अपने राजनीतिक कॅरियर के शीर्ष पर थे। फिर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और जब वह कांग्रेस से बाहर आए तो उन्होंने नए सिरे से अपना संघर्ष शुरू किया। डोभाल ने कहा कि मैं अच्छा या बुरा नहीं कह रहा हूं, लेकिन भारतीय इतिहास और विश्व इतिहास में ऐसे लोगों की तुलना बहुत कम है, जिन्होंने वर्तमान के खिलाफ आगे बढ़ने का दुस्साहस किया था, न कि आसान धारा के खिलाफ। उन्होंने कहा कि नेताजी अकेले व्यक्ति थे, जापान के अलावा उनका समर्थन कोई देश नहीं था।
कूटकूटकर भरी थी देशभक्ति
डोभाल ने कहा कि जब 1928 में लोगों में बात होने लगी कि आजादी के लिए कौन लड़ेगा, तो बोस आगे आए। उन्होंने कहा कि मैं अपने देश के लिए लड़ूगा। वह बोले कि लोगों की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मानसिकता बदलने की जरूरत है। उन्हें स्वतंत्र पक्षियों की तरह महसूस करने की जरूरत है।
गांधी जी को चुनौती देने का रखते थे साहस
एनएसए ने सुभाष के व्यक्तित्व से जुड़ी एक और बात पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि वह बेदह साहसी थे। आईसीएस की परीक्षा पास करने के बाद जब लंदन में सुभाष से पूछा गया कि उनके लिए सबसे अहम चीज क्या है तो उनका जवाब था – मेरा राष्ट्रवाद। सुभाष चंद्र बोस ने तब आईसीएस का पद ठुकरा दिया था। वह इस्तीफा देकर भारत वापस लौट आए थे।
डोभाल ने कहा कि सुभाष के पास गांधी को चुनौती देने का साहस था। जब गांधी अपने शीर्ष पर थे तब वह उन्हें चैलेंज करने की ताकत रखते थे। 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में महात्मा गांधी के कैंडिडेट पट्टाभि सीता रमैया को हरा दिया था। वह कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे। बोस की जीत पर गांधी ने बोला था कि सीता रमैया की हार उनकी हार है। इसके कुछ समय बाद बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
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