Odisha train accident: जहाँ हुआ हादसा कभी उसी जगह के कलेक्टर थे रेल मंत्री

बालासोर। ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों के हादसे के बाद राजनीति अपने चरम पर है। इस हादसे के बीच सबसे ज्यादा चर्चा रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की हो रही है। विपक्षी दल रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग कर रहे है। इस पूरे मामले पर रेलमंत्री ने शनिवार को जवाब देते हुए कहा है कि यह वक्त राजनीति करने का नहीं बल्कि बहाली के काम पर ध्यान देने का समय है।

अश्विनी वैष्णव, वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार में रेल और सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार मंत्री हैं। वैष्णव का जन्म राजस्थान में साल 1970 में हुआ। वैष्णव ने 1991 में एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज (JNVU) जोधपुर से स्नातक किया और इलेक्ट्रॉनिक और संचार इंजीनियरिंग में स्वर्ण पदक हासिल किया। उनके पास आईआईटी कानपुर से औद्योगिक प्रबंधन और इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री है। उन्होंने 1994 में ऑल इण्डिया 27 रैंक के साथ IAS की परीक्षा क्रैक की। वह 2008 में पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल से MBA करने के लिए अमेरिका गए। 1994 में, वैष्णव ओडिशा कैडर में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने बालासोर और कटक जिलों के जिला कलेक्टर के रूप में सेवाएं दीं। यह संयोग ही है जिस जिले में बतौर कलेक्टर वैष्णव ने काम किया था आज उसी बालासोर में एक भीषण ट्रेन हादसे की वजह से रेल मंत्री होने के नाते ग्राउंड जीरो पर मौजूद हैं।

बीजेपी के टिकट पर 28 जून 2019 को वह ओडिशा से राज्यसभा सदस्य चुने गये थे।
खास बात है कि ओडिशा में बीजेपी के पास पर्याप्त विधायकों की संख्या न होने के बावजूद वह बीजू जनता दल के समर्थन से राज्यसभा सांसद बनने में सफल हुए थे। अश्निनी वैष्णव ने साल 2003 तक ओडिशा में काम किया। वहीं 1999 में आये चक्रवात के दौरान ओडिशा में उनके काम को आज भी सराहा जाता है।

अटल बिहारी वाजपेयी के साथ किया काम
ओडिशा में कुछ वर्ष काम करने के बाद अश्विनी वैष्णव केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर पीएमओ में पहुंचे। यहां तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय पीएमओ में उपसचिव नियुक्त किये गये। इस दौरान उन्होंने पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल को तैयार करने में विशेष योगदान दिया था। आज यही मॉडल गाहे-बगाहे राजनीतिक गलियारे में सुनने को मिल जाता है। वहीं, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ा तो अश्विनी वैष्णव ने उनके निजी सचिव की भूमिका निभाई।

यहीं से उनकी भाजपा नेताओं के साथ-साथ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी जान पहचान हुई। कहा जाता है कि अश्विनी वैष्णव 360 डिग्री नौकरशाह रहे हैं। जो तकनीक, मैनेजमेंट और सरकारी कार्यों में माहिर तथा अनुभवी हैं। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2021 में अपने कैबिनेट में जगह दी और रेलमंत्री बनाया।

इंजीनियरिंग में डिग्री लेकर बने आईएएस
अश्विनी वैष्णव ने स्कूली शिक्षा जोधपुर से करने के बाद वहीं के एमबीएम कॉलेज (अब यूनिवर्सिटी) से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की। तत्पश्चात आईआईटी कानपुर से मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी करते हुए सिविल सर्विसेज की परीक्षा में 26वीं रैंक हासिल की। इसके बाद तकरीबन 16 साल आईएएस की नौकरी की।

रेल मंत्री तक का सफर
इसके बाद उन्होंने 2006 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव का पद छोड़ दिया। तभी अश्विनी वैष्णव ने स्टडी लीव ली और अमेरिका के व्हार्टन स्कूल, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री हासिल की। वहां से लौटने के बाद 2011 में उन्होंने सिविल सर्विसेस छोड़ दी और GE कैपिटल और सिमेंस जैसी कंपनियों में डायरेक्टर बन गये। 8 जुलाई 2021 से वह रेल मंत्री के रूप में कार्यभार संभाल रहे है।

आसान नहीं थी राज्यसभा की राह
साल 2019 में जब ओडिशा में राज्यसभा का चुनाव था, तब ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चाहते तो राज्यसभा की तीनों सीटों को जीत सकते थे। क्योंकि 147 सदस्यों वाली ओडिशा विधानसभा में बीजू जनता दल (बीजेडी) के 111 और भारतीय जनता पार्टी के 23 विधायक थे। तब बीजू जनता दल ने राज्यसभा के दो ही उम्मीदवार उतारे और तीसरी सीट पर नवीन पटनायक ने बीजेपी को समर्थन दे दिया। यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि बीजेपी ने अश्विनी वैष्णव को राज्यसभा का टिकट दे दिया था।

1999 के चक्रवात में वैष्णव की सक्रियता
29 अक्टूबर 1999 को जब ओडिशा में चक्रवाती तूफान आया था, तब अश्विनी वैष्णव कटक जिले के कलेक्टर के पद पर तैनात थे। अमेरिकी नौसेना की Joint Typhoon Warning Center (JTWC) बेवसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक चक्रवात के सटीक मार्ग का आकलन करके सारी जानकारी वे समय-समय पर संबंधित विभागों और ऊपर के अधिकारियों को देते रहे।साथ ही उन्होंने चक्रवात के रास्ते में स्थित सभी गांवों में रहने वाले लोगों से खुद बातचीत की, उन्हें समय रहते इकट्ठा किया और चक्रवात के तट पर आने से ठीक पहले पांच लाख से अधिक लोगों को वहां से निकाल लिया। इससे हजारों लोगों की जान बच गई। निकासी की रणनीति को तब पूरे पूर्वी भारत में एक चैलेंज के रूप में देखा गया था।

इस वजह से सुंदरगढ़, बालासोर और कटक जिलों में उनके काम की काफी सराहना हुई और कुछ समय बाद उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने के लिए चुना गया। हालांकि, इसके बाद भी 300 मील प्रति घंटे की गति से आई चक्रवाती तूफान के कारण 9,885 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि 3.3 मिलियन बच्चे, 5 मिलियन महिलाओं और लगभग 3.5 मिलियन बुजुर्गों सहित कम से कम 13 मिलियन लोग प्रभावित हुए थे।

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