नई दिल्ली। राज्यसभा सदस्य और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि राजद्रोह कानून का समर्थन करने वाली विधि आयोग की सिफारिशें गणतंत्र के लोकाचार और नींव के विपरीत हैं। आयोग ने राजद्रोह के अपराध के लिए दंडात्मक प्रावधान को बरकरार रखने का प्रस्ताव करते हुए कहा है कि इसे पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
सिब्बल ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “मैं इन सिफारिशों से परेशान हूं। ये सिफारिशें स्वयं गणतंत्र के लोकाचार के विपरीत हैं। वे गणतंत्र के सार के विपरीत हैं, वे गणतंत्र की नींव के विपरीत हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, “उन्होंने सरकार का दर्जा ऐसे दिया है जैसे सरकार ही राज्य हो। सरकार लोगों की इच्छा से स्थापित होती है; यह राज्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। यह राज्य के लिए काम करता है। यह एक ऐसा कानून है जो अवधारणात्मक रूप से दोषपूर्ण है।”
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी राजद्रोह के मामलों में अपराधों के लिए न्यूनतम जेल की अवधि को तीन साल से बढ़ाकर सात साल करने का सुझाव दिया। मई 2022 में जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद राजद्रोह से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए फिलहाल स्थगित है। ऐसे में दुरुपयोग के आरोपों के बीच, प्रावधान को निरस्त करने की मांग की गई है।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का कहना है कि विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘देशद्रोह के कानून का उपयोग’ में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं और बाध्यकारी नहीं हैं। बहरहाल, सिब्बल यूपीए 1 और यूपीए 2 सरकारों के दौरान केंद्रीय मंत्री रहे रहे हैं। हालांकि, उन्होंने पिछले साल मई में कांग्रेस छोड़ दी थी और समाजवादी पार्टी के समर्थन से एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में राज्यसभा के लिए चुने गए थे।
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