नई दिल्ली। नई संसद के उद्घाटन का मसला तूल पकड़ता जा रहा है। पहले विपक्षी दलों ने सरकार को इस बात के लिए घेरा कि उद्घाटन राष्ट्रपति के बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों कर रहे हैं। अब एक एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके इस मसले पर न्याय की गुहार लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील सीआर जया सुकिन ने यह जनहित याचिका दाखिल की है। इसमें कहा गया है कि उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को शामिल नहीं करके भारत सरकार ने भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है। ऐसा करके संविधान का सम्मान नहीं किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि संसद भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन (राज्यों की परिषद) राज्यसभा और जनता का सदन लोक सभा शामिल हैं। राष्ट्रपति के पास किसी भी सदन को बुलाने और सत्रावसान करने की शक्ति है। साथ ही संसद या लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के पास है।
19 विपक्षी दल पहले ही कर चुके हैं उद्घाटन समारोह का बहिष्कार
बता दें 18 मई को लोकसभा सचिवालय ने जो आदेश जारी किया है उसके हिसाब से पीएम नरेंद्र मोदी नई संसद का उद्घाटन 28 मई को करने जा रहा हैं। 19 विपक्षी दलों ने संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला लिया है। उनका भी कहना है कि राष्ट्रपति को न बुलाया जाना संविधान का सरासर अपमान है। उनका कहना है कि संसद राष्ट्रपति के बगैर काम भी नहीं कर सकती। लेकिन सरकार उद्घाटन समारोह में ही उनको नहीं बुलाने जा रही है। विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार लोकतंत्र को पूरी तरह से खत्म करने पर तुली हुई है।
वहीं एक के बाद एक राजनीतिक दलों के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार करने पर भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इन दलों पर निशाना साधा। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कांग्रेस संविधान का गलत हवाला दे रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता अपने पाखंड को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने क्रमशः 24 अक्टूबर, 1975 को पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया और 15 अगस्त 1987 को पार्लियामेंट लाइब्रेरी की आधारशिला रखी।
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