पटना। 1994 में भारतीय प्रशासिनक सेवा (IAS) अधिकारी और गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी (DM) जी. कृष्णैया की मॉब लिंचिंग कराने के दोषी बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह आज जेल-मुक्त हो गए। उन्हें सहरसा जेल से सुबह करीब पांच बजे रिहा कर दिया गया। हालाँकि रिहाई को बाद भी आनंद मोहन की मुश्किलें खत्म होती दिख नहीं रही है। उनकी रिहाई को लेकर जेल नियमों में हुए बदलाव के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी है।
जेल अधीक्षक अमित कुमार ने बताया कि शिवहर से पूर्व सासंद आनंद मोहन की रिहाई सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर हुई है। उन्होंने बिना किसी लाव-लश्कर के ही रिहाई ले ली। बताया जा रहा है कि विवाद से बचने के लिए उन्होंने यह फैसला लिया। जब यह आदेश आया तब आनंद मोहन अपने बेटे चेतन की सगाई के सिलसिले में पैरोल पर थे। बुधवार को ही उनकी पैरोल अवधि खत्म हुई और वे सहरसा जेल लौटे। जेल में हाजिरी देने के बाद से उनकी रिहाई की कागजी कार्यवाही की गई। इसके बाद गुरुवार तड़के अंधेरे में ही वे जेल से रिहा होकर चले गए।
आनंद को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके तहत उन्हें 14 साल की सजा हुई थी। आनंद ने सजा पूरी कर ली थी लेकिन मैनुअल के मुताबिक सरकारी कर्मचारी की हत्या के मामले में दोषी को मरने तक जेल में ही रहना पड़ता है। नीतीश सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया। इसका संकेत जनवरी में नीतीश कुमार ने एक पार्टी इवेंट में मंच से कहा था कि वो आनंद मोहन को बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं। 10 अप्रैल को राज्य सरकार ने इस मैनुअल में बदलाव कर दिया। आनंद मोहन समेत 27 दोषियों को सोमवार को रिहाई के आदेश जारी कर दिए गए। 3 और केस चल रहे हैं। इनमें उन्हें पहले से बेल मिल चुकी है।
पटना हाईकोर्ट में बिहार सरकार की ओर से जारी उस अधिसूचना को निरस्त करने के लिए लोकहित याचिका दायर की गई है, जिसके तहत बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में संशोधन कर ‘ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या’ वाक्य को हटाया दिया गया। इस लोकहित याचिका को सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अपने अधिवक्ता अलका वर्मा के माध्यम से दायर किया है। याचिका में राज्य सरकार की ओर से बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i) (क) में किए गए संशोधन को गैरकानूनी बताया गया है। यह अधिसूचना कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल असर डालने वाली है और ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवकों और आम जनता के मनोबल को गिराती है।
जी कृष्णैया की हत्या में बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई से बिहार की ब्यूरोक्रेसी में खलबली है। IAS एसोसिएशन भी विरोध में उतर आया है। बिहार के पूर्व IPS ने मुहिम छेड़ दी है। वह पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सरकार के फैसले पर जनहित के लिए रोक लगाने की मांग करेंगे। वहीं, जी कृष्णैया की पत्नी उमा सदमे में हैं। वह कहती हैं- ऐसा वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा रहा है। वह रिहाई को खुद के साथ अन्याय बताती हैं
DM को भीड़ ने पीटा था, फिर गोली मारकर हत्या की थी
गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया 5 दिसंबर 1994 को हाजीपुर से गोपालगंज लौट रहे थे। इसी दौरान मुजफ्फरपुर में आनंद मोहन के समर्थक DM की गाड़ी को देखते ही उन पर टूट पड़े। पहले उन्हें पीटा गया, फिर गोली मारकर हत्या कर दी थी। आरोप लगा कि भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। घटना के 12 साल बाद 2007 में लोअर कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी। 2008 में हाईकोर्ट ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। साल 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की। कोर्ट ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया था।
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