टोरंटो। पाकिस्तानी मूल के इस्लामिक स्कॉलर तारेक फतेह का सोमवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ वह मुखरता के साथ अपनी राय रखने के लिए जाने जाते थे। तारिक फतेह खुद को हिंदुस्तानी ही कहते थे और पाकिस्तान को भी भारतीय संस्कृति का ही हिस्सा मानते थे। भारत विभाजन को गलत बताते हुए वह दोनों देशों की एक ही संस्कृति की बात करते थे।
फतेह का जन्म पाकिस्तान के कराची शहर में साल 1949 में हुआ था। अपने शुरुआती जीवन में वे वामपंथी विचारधारा से खासा प्रेरित रहे और पाकिस्तान को लेकर उनका रोष शुरुआत से ही देखने मिला। उस रोष का खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा जब 1977 में जनरल रिया उल क ने उन पर गद्दारी का आरोप लगा दिया। उस एक आरोप की वजह से उनके कलम पर भी विराम लगा दिया गया और उनका अखबारों में कॉलम आने का सिलसिला थम गया। इसके बाद साल 1987 में फतेह की जिंदगी में सबसे बड़ा नाटीकय मोड़ आया जब उन्हें पाकिस्तान छोड़ कनाडा जाना पड़ा। ये फैसला उन्होंने खुद लिया और अपने मुल्क को छोड़ दिया। इसके बाद से उनकी किताबें और उनके बयान ही उनकी पहचान बन गए, वे पाकिस्तान से दूर रहकर भी वहां की राजनीति को बखूबी समझते भी थे और पूरी दुनिया के सामने उसे रखते भी थे।
वो पॉलिटिकल एक्टिविस्ट होने के साथ ही टीवी होस्ट और लेखक थे। उनकी किताब ‘चेसिंग ए मिराज: द ट्रैजिक इल्यूजन ऑफ एन इस्लामिक स्टेट’ बेस्ट सेलर साबित हुई। इसके अलावा, ‘द ज्यू इज नॉट माय एनिमी’ भी काफी लोकप्रिय रही। फतेह कहते थे कि मैं पंजाब का शेर, हिंदुस्तान का बेटा, कनाडा का प्रेमी, सच्चाई का पैरोकार और नाइंसाफी के खिलाफ लड़ने वाला शख्स हूं। फतेह की बेटी नताशा ने पिता के निधन की जानकारी सोशल मीडिया पर दी। नताशा ने सोशल मीडिया पर भी पिता के उन्हीं शब्दों को दोहराया जो वो अपने बारे में अक्सर कहा करते थे।
एक इंटरव्यू में तारेक ने कहा था कि मैं तो राजपूत परिवार से आता हूं, जिसे 1840 में जबरिया तौर पर मजहब बदलने के लिए मजबूर किया गया। मैं पाकिस्तान में पैदा हुआ हिंदुस्तानी बेटा हूं। मैं सलमान रशदी की किताब में मिडनाइट चिल्ड्रन्स के कई बच्चों में से एक हूं। हमें एक शानदार सभ्यता छोड़कर ताउम्र रिफ्यूजी बना दिया गया।
तारिक फतेह कई भाषाओं के जानकार थे। उनकी हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, पंजाबी और अरबी जैसी भाषाओं पर समान पकड़ थी। तारिक फतेह को ह्यूमन राइट्स ऐक्टिविस्ट के तौर पर भी जाना जाता था। भारतीय टीवी चैनलों में भी बीते कुछ सालों से वह नजर आते थे और अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे। वह पाकिस्तान से ज्यादा अपनी पहचान भारत से ही जोड़ते थे। उन्होंने ‘यहूदी मेरे दुश्मन नहीं हैं’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी। यही नहीं पाकिस्तान में बलूचों के आंदोलन के भी वह समर्थक थे।
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