नई दिल्ली। केशवानंद भारती केस की 50 वीं वर्षगाठ पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले पर विशेष वेब पेज बनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इस बात की जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले की 50वीं वर्षगांठ पर एक वेब पेज समर्पित किया है। केशवानंद भारती केस में कोर्ट की अब तक की सबसे बड़ी 13 जजों की बेंच ने कहा कि सरकारें संविधान से ऊपर नहीं हैं।
1973 में केरल सरकार ने भूमि सुधार के लिए दो कानून बनाए। इन कानून के जरिए सरकार मठों की संपत्ति को जब्त करना चाहती थी। जैसे ही केशवानंद भारती को इसकी जानकारी मिली वो सरकार के खिलाफ कोर्ट पहुंच गए। वो केरल के एडनीर में स्थित शैव मठ के मठाधीश थे। केशवानंद भारती शंकराचार्य परंपरा से आते थे, उन्होंने 19 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था।केशवानंद भारती ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 26 हमें धर्म के प्रचार के लिए संस्था बनाने का अधिकार देता है। ऐसे में सरकार ने इन संस्थाओं की संपत्ति जब्त करने के लिए जो कानून बनाए वो संविधान के खिलाफ हैं।
केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल उठा कि क्या सरकार संविधान की मूल भावना को बदल सकती है? इस मामले में सुनवाई के लिए 13 जजों की बेंच बनी। इस बेंच का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एस एम सीकरी कर रहे थे। इस मामले में 7 जजों ने संत केशवानंद भारती के समर्थन में जबकि 6 जजों ने सरकार के समर्थन में फैसला सुनाया।
फैसले में कोर्ट ने तीन मुख्य बातें कही थीं…
1. सरकार संविधान से ऊपर नहीं है।
2. सरकार संविधान की मूल भावना यानी मूल ढांचे को नहीं बदल सकती।
3. सरकार अगर किसी भी कानून में बदलाव करती है, तो कोर्ट उसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है।
केस के हीरो नानी पालकीवाला
नानी पालकीवाला जोकि जाने माने वकील और संविधान के ज्ञाता थे, उन्होंने इस पूरे मामले में केशवानंद भारती की ओर से कोर्ट में पैरवी की। संविधान के संशोधन 24, 25, 26 और 29वें को चुनौती दी गई, जिसकी पालकीवाला ने कोर्ट में मठ की ओर से पैरवी की। इस केस की वजह से नानी पालकीवाला इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। दिलचस्प बात यह है कि केशवानंद भारती और नानी पालकीवाला की कभी भी आपस में मुलाकात नहीं हुई।
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