गाजियाबाद। गाजियाबाद में निकाय चुनाव का दौर चल रहा है। यहाँ सड़कें, सफाई, नालियां कूड़ा निस्तारण, पर्यवारण जैसे मुद्दे ही अहम हैं। हर बार स्वच्छता को लेकर बड़े बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कोसो दूर है, ऐसे में सवाल उठता है कि गाजियाबाद को इंदौर से सीख लेने की जरूरत है?
केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर के लगातार छठी बार देश भर में अव्वल रहने की सिलसिलेवार कामयाबी हासिल की है। हर रोज औसतन 1,900 टन कचरे को हर दरवाजे से 6 श्रेणियों में अलग-अलग जमा करने और इसका सुरक्षित निपटान के मजबूत मॉडल पर टिकी है। इंदौर देश का पहला कचरा मुक्त शहर है। साल 2022 में शहर ने कचरे 14 करोड़ रुपए की कमाई की है। शहरी क्षेत्र से निकलने वाले गीले कचरे से बायो-सीएनजी बनाने का एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र लगाने के बाद इंदौर ने देश के अन्य शहरों को सफाई के मुकाबले में काफी पीछे छोड़ दिया है।
स्वच्छता पुरस्कारों का सिलसिला जब वर्ष 2016 में शुरू हुआ तो उस समय मनीष सिंह इंदौर नगर निगम के आयुक्त थे। स्वच्छता पुरस्कार शुरू होने के बाद से ही इंदौर नगर निगम ने इस संकल्प के साथ काम शुरू किया कि उसे किसी भी हालत में यह पुरस्कार हासिल करना ही है। इस काम में सबसे बड़ी बाधा खुद नगर निगम के सफाई कर्मचारी ही थे। देश की करीब करीब सभी नगरीय संस्थाओं में सफाई कर्मचारियों के बारे में यह बात आम है कि वे या तो काम पर आते नहीं और आते भी हैं तो काम को ठीक से अंजाम नहीं देते। इस पर सख्ती की गई और 700 से ज्यादा नियमित और अस्थाई कर्मचारियों को या तो निलंबित किया गया या नौकरी से बाहर कर दिया गया।
इंदौर नगर निगम के ही लोग बताते हैं कि पहला पुरस्कार पाने का संकल्प लेकर चलने वाले आयुक्त मनीष सिंह ने इस मामले में महापौर मालिनी गौड़ से सीधी बात की और उनसे अनुरोध किया कि वे सफाई के मामले में किसी भी राजनीति को आड़े न आने दें। महापौर ने भी शहर की बेहतरी के इस काम में पूरी तरह साथ देने का वायदा किया। एक तरफ जहां सफाई कामगारों को सख्ती से काम पर लगाया गया वहीं उनके नेताओं से भी बात करके उन्हें भी अलग अलग जिम्मेदारी सौंपी गई। इससे अभियान में आड़े आ सकने वाली नेतागिरी पर लगाम लग सकी। महापौर, नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह सहित जनप्रतिनिधियों ने नए सिरे सफाई का मॉड्यूल तैयार करने की कवायद शुरू की। इसके लिए अधिकारियों से लेकर सफाइकर्मियों और कचरा वाहनों के चालकों की टीम बनाई गई। निगम ने अपने संसाधनों का आकलन किया।
तत्कालीन आयुक्त ने दोनों तरह की रणनीति पर काम किया। शहर में कचरे के प्रबंधन की रणनीति तय हुई। 2017 में पहली बार इंदौर को जब स्वच्छता में अव्वल आने का पुरस्कार मिला तो शहरवासियों में खुशी का भाव तो था लेकिन कई लोग इसे तुक्का मानकर भी चल रहे थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि लोगों का मिजाज बदलना इतना आसान नहीं होता। धारणा यह थी कि एक बार पुरस्कार मिल गया बस, अब चीजें और लोगों का रवैया धीरे धीरे उसी पुराने ढर्रे पर आ जाएगा।
इस बीच अभियान को एक और झटका ये लगा कि मनीषसिंह का आयुक्त पद से तबादला हो गया और 2018 में आशीष सिंह नए आयुक्त बनकर आए। आमतौर पर नौकरशाही में यह बात देखी गई है कि कोई भी अफसर किसी दूसरे अफसर की, खासतौर से अपने पूर्ववर्ती अफसर की लाइन को आगे बढ़ाने में बहुत ज्यादा भरोसा नहीं रखता। वह अपनी अलग लाइन खींचकर उसके जरिये अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है लेकिन यह इंदौर की खुशकिस्मती थी कि आशीष सिंह ने मनीष सिंह के काम को न सिर्फ जारी रखा बल्कि उसकी सफलता में पूरी ताकत झोंक दी।
मनीष सिंह ने इंदौर में स्वच्छता के जिस काम को शुरू किया था आशीष सिंह ने उसे लोगों की आदत बनाने का काम किया। यही कारण रहा कि उनके दो साल के कार्यकाल में भी इंदौर ने स्वच्छता के मामले में अव्वल आने का सिलसिला जारी रखा। इसे किसी अभियान की सफलता का असर और चस्का कह सकते हैं कि सफाई के प्रति आशीष सिंह के मन में जो आग्रह पनपा था वह उनके इंदौर से तबादला होकर कलेक्टर के रूप में उज्जैन जाने पर भी वैसा ही बना रहा और उन्होंने उज्जैन को भी स्वच्छ शहरों की सूची में बहुत आगे ला दिया.
आशीष सिंह के जाने के बाद 2020 में इंदौर को प्रतिभा पाल के रूप में अपने इतिहास की पहली महिला आयुक्त मिलीं और उन्होंने भी इस मसले की गंभीरता और इस उपलब्धि के महत्व को समझते हुए कोई कोताही नहीं बरती। जिस भाव और समर्पण से उनके पूर्ववर्ती अधिकारियों ने इस काम को शुरू किया था उन्होंने उसी भाव को आगे बढ़ाया और इसका नतीजा यह रहा कि प्रतिभा पाल के कार्यकाल में भी लगातार दो बार इंदौर ने सबसे स्वच्छ शहर का सम्मान हासिल करते हुए स्वच्छता का पंच लगा दिया।
लगातार चलती हैं 850 गाड़ियां
2 अक्टूबर 2014 में जब स्वच्छ भारत अभियान शुरू हुआ था तो स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर का स्थान 149वें पायदान पर था। महज ढाई साल में इंदौर पहले नंबर पर पहुंच गया और उसके बाद लगातार राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण में भी पहले स्थान पर बना हुआ है। आईएमसी की स्वच्छता इकाई के अधीक्षण इंजीनियर महेश शर्मा ने बताया कि शहर भर में लगातार चलने वाली 850 गाड़ियों की मदद से हम लगभग हर घर एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान के दरवाजे से गीला और सूखा कचरा छह श्रेणियों में अलग-अलग जमा करते हैं। इन गाड़ियों में बनाए गए विशेष कम्पार्टमेंट में डायपर और सैनिटरी नैपकिन जैसे जैव अपशिष्ट भी अलग से एकत्र किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्रोत पर ही कचरे को अलग-अलग जमा करने से प्रसंस्करण के लिए इसकी गुणवत्ता उत्तम रहती है। शहरी क्षेत्र से निकलने वाले गीले कचरे से बायो-सीएनजी बनाने का एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र’ लगाने के बाद इंदौर ने देश के अन्य शहरों को सफाई के मुकाबले में काफी पीछे छोड़ दिया है। इंदौर की सड़कों को दिन में तीन बार साफ किया जाता है जबकि व्यवसायिक इलाकों से दो बार और आवासीय क्षेत्रों से एक बार कचरा उठाने का काम किया जाता है।
ऐसे होता है कूड़े का निस्तारण
शहर ने गीला और सूखा कचरा अलग-अलग इकट्ठा किया जाता है। हर घर में गीला और सूखा कचरा के लिए अलग डस्टबिन होता है। हर घर में कचरा इकट्ठा करने के लिए गाड़ियां आती हैं, इन गाड़ियों में अलग-अलग तरह के कचरे को डालने के लिए अलग-अलग चैंबर बने होते हैं। इसके बाद इन्हें प्रोसेसिंग के लिए अलग-अलग यूनिट में ले जाया जाता है, गीला और सूखा कचरा अलग-अलग मशीनों में प्रोसेस किया जाता है। सूखा कचरा प्रोसेस करने के लिए शहर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक वाली एक मशीन भी लगाई गई है। ये मशीन बिना इंसानी मदद के प्लास्टिक, काग़ज़ और दूसरी तरह के कूड़े को अलग कर देती है, इस अलग हुए कचरे को रिसाइकल होने के लिए भेज दिया जाता है।
इंदौर नगर निगम के कंस्लटेंट असद वारसी बताते हैं कि हम हर दिन 1150 मेंट्रिक टन कचरा प्रोसेस कर लेते हैं। हमने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया है, ये पूरे देश के लिए एक रोल मॉडल हैं। कचरा प्रोसेस करना तभी मुमकिन होता है जब घरों से निकलने वाला कचरा अलग-अलग कर दिया जाए। इंदौर के रहने वाले लोगों का इसमें बहुत बड़ा योगदान रहा है।
बिना ट्रेंचिंग ग्राउंड वाला शहर
इंदौर शहर के बाहर देवगुरड़िया इलाक़े में एक बड़ा ट्रेंचिंग ग्राउंड था जहां शहर का पूरा कचरा फेंका जाता था। कचरे के पहाड़ वाली इस जगह पर हमेशा आग लगी रहती थी। आसपास रहने वाले लोगों के लिए सांस लेना भी मुश्किल था लेकिन पिछले साल कुछ ही महीनों के अंदर इसे एक मैदान में तब्दील कर दिया गया जिसपर पेड़ पौधे लगाए गए हैं।
दो-तीन नहीं छह श्रेणियों में अलग होता है अपशिष्ट
जहां एक ओर देश में अधिकांश स्थानों पर वहां के कचरे को दो श्रेणियों (गीले और सूखे कचरे) में अलग किया जाता है, वहीं इंदौर में कचरे को एक कलेक्शन पॉइन्ट पर छह श्रेणियों में अलग किया जाता है। इंजीनियर महेश शर्मा इंदौर नगर निगम के स्वच्छता विंग के सुपरिटेंडेंट हैं, उन्होंने बताया कि आईएमसी (इंदौर नगर निगम) के पास 850 वाहन हैं जो घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कचरा इकट्ठा करते हैं और इसे छह श्रेणियों में अलग करते हैं। जिन छह श्रेणियों में अपशिष्ट या कचरे को अलग किया जाता है वे इस प्रकार हैं :- गीला कचरा, इलेक्ट्रॉनिक्स कचरा, प्लास्टिक कचरा, नॉन-प्लास्टिक कचरा, बायोमेडिकल अपशिष्ट और खतरनाक अपशिष्ट।
एनजीओ की है अहम भागीदारी
स्व्च्छता अभियान में शहर के कई एनजीओ ने भी अहम भूमिका निभाई, जिसमें खुले में शौच करने वाले लोगों का नामकरण कर शर्मिंदा किया। यही नहीं खुले में शौच करने वालों को डब्बा गैंग कहकर बुलाया जाने लगा। पकड़े जाने वाले लोगों पर जुर्माना भी लगाया गया। किसी को नहीं छोड़ा गया, चाहे वो राजनीति से जुड़ा हो या फिर बड़ा व्यवसायी। सड़कों पर जगह-जगह डस्टबिन है। लोगों को जागरूक बनाए रखने के लिए शहर को स्वच्छता के बैनर पोस्टर से पाट दिया गया, वॉल पेंटिंग्स बनाई गई हैं। जगह-जगह टॉयलेट्स की व्यवस्था की गई।
दिवाली-होली हो, रंगपंचमी या अनंत चर्तुदशी सभी त्योहार यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस दौरान सड़क पर कचरा भी होता है। लोगों के कार्यक्रम खत्म होने के तुरंत बाद नगर निगम की सफाईकर्मियों की टीम सड़क पर उतरती है और देखते ही देखते सड़कें चकाचक हो जाती है। इस काम में न रात देखी जाती है ना दिन।
गंदे पानी का संयंत्रों में उपचार
शहर में निकलने वाले गंदे पानी का विशेष संयंत्रों में उपचार किया जाता है और इसका 200 सार्वजनिक बगीचों के साथ ही खेतों और निर्माण गतिविधियों में दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है।
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