नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस मामले में कैद के दौरान सभी 11 दोषियों को पैरोल दिए जाने पर मंगलवार को सवाल खड़े किए। पीठ ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया और किस सामग्री के आधार पर सजा में छूट देने का फैसला किया।’ न्यायालय ने कहा, ‘आज बिलकिस है, कल कोई भी हो सकता है।
जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि अपराध की गंभीरता पर राज्य द्वारा विचार किया जा सकता था। न्यायालय ने कहा, ‘एक गर्भवती महिला से सामूहिक दुष्कर्म किया गया और कई लोगों की हत्या कर दी गई। आप पीड़िता के मामले की तुलना धारा 302 (हत्या) के सामान्य मामले से नहीं कर सकते। जैसे सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। अपराध आम तौर पर समाज और समुदाय के खिलाफ किए जाते हैं। असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है।’
पीठ ने कहा कि अगर आप सजा में छूट प्रदान करने के अपने कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे।’ न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों को सजा में छूट देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम निस्तारण के लिए 2 मई की तारीख निर्धारित की। अदालत ने उन सभी दोषियों से अपना जवाब दाखिल करने को कहा, जिन्हें नोटिस जारी नहीं किया गया है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य से समीक्षा याचिका दाखिल करने के बारे में उनका रुख स्पष्ट करने को कहा।
15 अगस्त को रिहा हुए थे दोषी
2002 में हुए गोधरा कांड के दौरान बिलकिस बानो से रेप किया गया था और उसके परिवार के लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया गया था, पिछले साल 15 अगस्त पर 2022 गुजरात सरकार ने एक कमेटी की रिपोर्ट के समय से पहले रिहा कर दिया था। इसके बाद बिलकिस बानो ने 30 नवंबर 2022 को इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर की थी। इसके अलावा सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली और टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने मामले के 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की है।
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