नई दिल्ली। भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता को लेकर बहस चल रही है। इस मामले में कम से कम 15 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में आई थीं हालाँकि केंद्र सरकार ने इसे कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है। भारत में समलैंगिक संबंधों को मान्यता दे दी गई है, यह अब कानूनी तौर पर अपराध नहीं है लेकिन समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए भारत सरकार राजी नहीं है। हालांकि कई ऐसे देश हैं जहां पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दे दी गई है।
दुनियाभर के 32 देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर मान्यता दी गई है। इसमे नीदरलैंड पहले नंबर पर है। नीदरैलंड में दिसंबर 2000 में इसे कानूनी मान्यता दी गई थी। इसके अलावा अमेरिका, ताईवान, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, अर्जेंटीना, कनाडा, जर्मनी, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रिया, माल्टा, फिनलैंड, कोलंबिया, ग्रीनलैंड, लग्जमबर्ग, स्कॉटलैंड, उरुग्वे, चिली, स्लोवीनिया, इंग्लैंड और वेल्स, फ्रांस, ब्राजील, डेनमार्क, आयरलैंड, नॉर्वे, बेल्जियम, पुर्तगाल, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन ऐसे देश हैं जहां पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी गई है।
क्या है मुद्दा?
बीते साल 25 नवंबर को दो गे कपल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की। इसके बाद अदालत की तरफ से नोटिस जारी किया गया था। माना जा रहा है कि याचिकाकर्ता इसके जरिए समाज में LGBTQIA+ समुदाय के साथ भेदभाव खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
कैसे हुई शुरुआत?
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। चीफ़ जस्टिस की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एकमत से ये फ़ैसला सुनाते हुए धारा 377 को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमाना बताते हुए कहा कि यौन प्राथमिकता प्राकृतिक और निजी मामला है। इसमें राज्य को दख़ल नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के समानता के अधिकार (आर्टिकल 14) का हनन है। उसके बाद से ही समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग जोर पकड़ रही है।
समर्थन में तर्क
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) इस याचिका के समर्थन में है। आयोग ने सरकार से समलैंगिक परिवार इकाइयों को प्रोत्साहित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग भी की है। उनकी दलील है कि कई स्टडीज में ये बात साबित हुई है कि समलैंगिक जोडे़ अच्छे माता-पिता बन सकते हैं। वहीं, दुनिया 50 से ज्यादा ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक जोड़ों को कानूनी तौर पर बच्चा गोद लेने की अनुमति है। इसके अलावा इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी (IPS) भी इसके समर्थन में आ गई है।
विरोध में तर्क
केंद्र सरकार लगातार इसके विरोध में रही है। केन्द्र सरकार ने दलील दी कि यह एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। साथ की केन्द्र ने इस तरह के विवाह को ‘देश के सामाजिक लोकाचार से दूर शहरी अभिजात्य अवधारणा’ बताया। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि ये संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है और सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकता। ये नीतिगत मामला है और बड़ी संख्या में हितधारकों से परामर्श करने की आवश्यकता है। जमात उलेमा-ए-हिंद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे संगठन भी समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं।
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