नई दिल्ली। भारत की जेलों में बंद केवल 22 प्रतिशत लोग ही सजायाफ्ता मुजरिम हैं, 77.10 प्रतिशत बंदी विचाराधीन हैं। देश की करीब 80% आबादी मुफ्त कानूनी सहायता की पात्र है, फिर भी इस पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च 3.84 रु. है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 ने यह दावा कर बताया कि साल 2010 के मुकाबले 2021 तक विचाराधीन बंदियों की संख्या 2.4 लाख से बढ़कर 4.3 लाख पहुंच चुकी है, यानी करीब दोगुनी हुई है। रिपोर्ट ने जेलों में क्षमता से अधिक लोगों को रखने पर चिंता जताई। इसके अनुसार 2021 में जेलों में आबादी कुल 5.54 लाख पहुंच चुकी है, जबकि 2020 व 2019 में यह क्रमश: 4.89 लाख व 4.81 लाख थी। केवल 2021 में देश की 1,319 जेलों में 18.1 लाख लोग भेजे गए, जो 2020 के 16.3 लाख से करीब 10.8% अधिक है। मध्यप्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और अंडमान निकोबार द्वीप समूह की जेलों में विचाराधीन बंदियों की संख्या 60% से कम है। अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय और पुडुचेरी को छोड़ हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में विचाराधीन कैदी बढ़े। देश 1 कैदी पर हर साल औसतन 38,028 रुपये खर्च कर रहा है। 2020 में इससे ज्यादा 43,062 रुपये खर्च हो रहे थे। आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 2,11,157 रुपये औसत खर्च हो रहे हैं।
MP में 2020 में अफसरों के 49% पद खाली थे, अब सिर्फ 21%
देश में पुलिस पर 2020-21 के दौरान प्रति व्यक्ति 1,151 रुपए खर्च किए गए, जो पहले 912 रु. ही थे। इसके बावजूद अधिकारियों के 29% और कांस्टेबल के 22% पद खाली पड़े हैं। अफसरों के रिक्त पदों में बिहार (54%) और राजस्थान (46%) सबसे आगे हैं। वहीं, प. बंगाल में कांस्टेबल के सबसे ज्यादा 44% पद खाली हैं। इस सूची में हरियाणा 32% के साथ दूसरे नंबर पर है।
देश में 831 लोगों पर एक पुलिसकर्मी है। हालांकि, MP में 2020 के दौरान अधिकारियों के 49% पद खाली थे, जो 2022 में 21% ही रह गए। कर्नाटक एकमात्र राज्य है, जिसने पुलिस अधिकारियों और कांस्टेबल दोनों के लिए एससी, एसटी व ओबीसी कोटा पूरा किया।
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