नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में बनी मस्जिद 3 महीने में हटाने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने 2018 में ही सार्वजनिक ज़मीन पर बनी इस मस्जिद को हटाने के लिए कहा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में कोई कमी नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने 2012 में अपनी जमीन वापस मांगी थी। इस पर मस्जिद का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। ऐसे में हम हाई कोर्ट के फैसले पर कोई दखल नहीं दे सकते। वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नवंबर 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद को परिसर से बाहर ले जाने के लिए तीन महीने का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
बता दें कि अभिषेक शुक्ला नाम के एडवोकेट की अर्जी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मस्जिद हटाए जाने का आदेश दिया था। वहीं मस्जिद के पक्ष में बोलते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की इमारत 1861 में तैयार हुई थी। उसके बाद से ही मुस्लिम वकील, क्लर्क और क्लाइंट उत्तरी कोने पर शुक्रवार को नमाज पढ़ा करते थे। लेकिन इस जगह पर बाद में जजों के चेंबर बन गए।
कपिल सिब्बल ने किया मस्जिद हटाने की बात का विरोध
हालांकि मुस्लिम वकीलों की मांग पर हाई कोर्ट ने दक्षिणी छोर पर एक जगह नमाज के लिए दे दी। यहीं पर बाद में मस्जिद बन गई, लेकिन इस जमीन की लीज खत्म किए जाने के बाद मस्जिद हटाने की भी मांग हो रही है, जो गलत है। उन्होंने कहा कि जिस मस्जिद को हटाने की बात हो रही है, वह तो इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर के बाहर रोड किनारे पर बनी है। ऐसे में यह कहना गलत होगा कि यह मस्जिद हाई कोर्ट परिसर के अंदर है।
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